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महावीर का अर्थशास्त्र
जाती हैं, बिल्कुल आर्थिक गुलामी की सी स्थिति बन जाती है । बौद्धिक सम्पदा पर भी प्रतिबन्ध लग जाता है। एक संतुलन बने
इन सारी समस्याओं के संदर्भ में आज एक मध्यम मार्ग का अनुसरण बहुत जरूरी है। छोटे उद्योग, सबके पास अपना काम, कोई भी इतना बड़ा न हो कि जब चाहे अपने से निर्बल को दबा सके। एक आदमी के शक्तिशाली होने का मतलब है, कमजोरों पर निरन्तर मंडराता खतरा। एक संतुलन बने। इस प्रकार के सूत्र भगवान् महावीर की वाणी में मिलते हैं, क्योंकि उनका चिन्तन अनेकान्त से अनुप्राणित था। सबसे बड़ी बात है मानवीय अस्तित्व और मानवीय स्वतन्त्रता की। इस पर आंच न आए और आवश्यकताओं की पूर्ति भी हो जाए, ऐसे अर्थशास्त्र की आज परिकल्पना आवश्यक है । रोटी और आजादी, रोटी और आस्था—दोनों एक दूसरे का विखण्डन न करें, दोनों साथ-साथ चलें। पुराने जमाने में कहा जाता थालक्ष्मी और सरस्वती दोनों साथ-साथ नहीं रहतीं। आज यह धारणा बदल गई है। दोनों एक साथ चल रही हैं। फिर ऐसा क्यों नहीं हो सकता? रोटी और आजादी भी एक साथ क्यों नहीं रह सकती? रोटी और आस्था--दोनों का योग क्यों नहीं हो सकता? ऐसे अर्थशास्त्र की आज बड़ी आवश्यकता है। मैं कल्पना करता हूं कि अनेकान्त का यह महान् अवदान मानव-जाति के लिए कल्याणकारी होगा और मानव-जाति अनेकान्त के मंत्रदाता भगवान् महावीर के प्रति स्वयं सहज श्रद्धाप्रणत होगी।
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