SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर्यावरण और अर्थशास्त्र आज विश्वविद्यालयी शिक्षा प्राप्त व्यक्ति, अर्थशास्त्र की आधुनिक अवधारणाओं में पला-पुसा मानव वैसा जीवन जीने के लिए तैयार होगा, यह कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए एक मध्यम मार्ग का निर्माण आवश्यक है, जिससे वर्तमान की समस्याओं को भी समाधान मिले और आदमी को उस भयावह कालखण्ड में जीने के लिए बाध्य न होना पड़े। यह मार्ग अनेकान्त का मार्ग हो सकता है। हम प्रेरणा को भी बदलें और दृष्टिकोण को भी बदलें । दृष्टिकोण का निर्माण जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हो । इसके लिए जिस अर्थशास्त्र की कल्पना की जा रही है, उसका पहला सूत्र होगा-प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति को प्राथमिकता। जब तक विश्व में मानव समाज का एक भी वर्ग भूखा है, तब तक शस्त्र निर्माण की दिशा में हमारा पग नहीं उठेगा, विलासिता पूर्ण पदार्थों के निर्माण के लिए हमारे कारखाने नहीं चलेंगे। अनिवार्यता और विलासिता हम अर्थशास्त्रीय दृष्टि से विचार करें। दो प्रकार की अवधारणाएं हमारे सामने आएंगी—एक अनिवार्यता और दूसरी विलासिता । अनिवार्यता या आवश्यकता वह है, जिसकी प्राप्ति होने पर सुख नहीं मिलता और अप्राप्ति में कोई दुःख नहीं होता। रोटी आवश्यकता है, मिली तो सुख नहीं होगा, बस भूख मिट जाएगी और न मिलने पर दुःख बहुत होगा। एक विलासिता की सामग्री है, प्रसाधन की सामग्री है, मिलने पर आदमी को बहुत सुख होता है किन्तु न मिलने पर कोई दुःख नहीं होगा। नए अर्थशास्त्र के निर्माण में यदि यह अवधारणा रहे-जब तक प्राथमिक आवश्यकताओं की पर्ति न हो, तब तक विलासिता की साधन सामग्री का निर्माण नहीं होगा तो आज की भूखमरी और बेरोजगारी की समस्या का बहुत अंशों में समाधान हो जाए। दाता और याचक का भेद आज सहयोग की बात चल रही है। विकसित राष्ट्र विकासशील देशों को सहयोग दे रहे हैं । व्यवहार में तो यह बहुत अच्छी बात लगती है, उदारीकरण की बात लगती है, किन्तु आखिर इस बात को सब जानते हैं कि दाता और याचक का भेद बराबर बना रहेगा। संस्कृति के कवि ने बहुत सुन्दर लिखा है दातृयाचकयोः भेद कराभ्यामेव सूचितम् लेने वाला हाथ नीचे रहेगा और देने वाला हाथ ऊपर होगा। इस स्थिति को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। उसके साथ कितने प्रतिबन्ध, कितनी शर्ते जुड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy