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________________ पर्यावरण और अर्थशास्त्र साथ संतुलित रूप से विचार किया जाता तो केवल आगे बढ़ना है, पीछे नहीं लौटना है, सम्पन्न और अधिक सम्पन्न बनना है—इस प्रकार के उद्गार सामने नहीं आते। बढ़ता मानसिक विक्षेप आज शारीरिक स्वास्थ्य की समस्या भी विकट है । जिस प्रकार प्रदूषण बढ़ा है और जिस प्रकार रासायनिक द्रव्यों का छिड़काव हो रहा है, उससे मनुष्यों का शारीरिक स्वास्थ्य भी काफी प्रभावित हुआ है। शारीरिक स्वास्थ्य से भी ज्यादा मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है। यदि हम पांच दशक, छह दशक पहले की स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन करें तो हमारे सामने यह निष्कर्ष आएगा-आज मानसिक विक्षेप ज्यादा बढ़ा है, मानसिक रोगों के अस्पताल ज्यादा खुले हैं। आत्महत्याओं का अनुपात बढ़ा है, तलाक की दरें बढ़ी है, सामाजिक अपराध बढ़े हैं। अपराध की रोकथाम के लिए भारी भरकम बजट विकसित राष्ट्रों को निर्धारित करना पड़ रहा है। विकसित राष्ट्रों का सिर्फ अपराध नियंत्रण पर जितना बड़ा बजट है, उतना छोटे, अविकसित राष्ट्र का पूरा बजट भी नहीं है। संहारक अस्त्र-शस्त्रों की समस्या भी बढ़ी है। दूसरी दिशा में इन सारी समस्याओं के संदर्भ में हम आधुनिक अर्थशास्त्र की अवधारणाओं को पढ़ें, तो लगेगा-रोटी, पानी आदि आवश्यक साधनों को जुटाने के लिए जो. संकल्प लिया था, वह पूरा नहीं हो रहा है, दूसरी दिशा में जा रहा है। यदि सारा धन मनुष्य की भूख मिटाने में लगता तो आज कोई भूखा न रहता। वह स्वप्न पूर्ण नहीं हआ, क्योंकि उसके साथ मानसिक समस्याओं का अध्ययन नहीं किया गया। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित करना चाहता है, अपना अधिकार बनाए रखना चाहता है। उसके लिए किस तरह गुप्तचरी का जाल बिछाया जाता है, किस प्रकार प्रतिद्वन्द्वी राष्ट्र के सामने समस्याओं पैदा की जाती हैं और किस प्रकार दूसरे पर आक्रमण किया जाता है, विकसित राष्ट्र गरीब या अविकसित, विकासशील राष्ट्र पर किस तरह आर्थिक प्रतिबन्ध लगाते हैं, ये सारी मानसिक समस्याएं हैं। अगर भौतिक समस्याओं के समाधान के साथ-साथ मानसिक समस्याओं को भी देखा जाता, इन पर ध्यान दिया जाता- भौतिक संपदा के साथ-साथ मानसिक समस्याएं कितनी बढ़ेगी तो शायद अर्थशास्त्र का स्वरूप बदलता, उसकी अवधारणाएं भी बदलती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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