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पर्यावरण और अर्थशास्त्र रेयो पृथ्वी शिखर सम्मेलन की आयोजना की गई। उस सम्मेलन ने प्रदूषण की समस्या की गंभीरता को रेखांकित किया किन्तु समस्या आज भी विकट बनी हुई
भूमि का उत्खनन
भूमि का अतिरिक्त दोहन और उत्खनन हुआ है। मनुष्य अपनी सुविधा के लिए, आवश्यकता की पूर्ति के लिए भूमि का उत्खनन करता रहा है। यह कोई नई बात नहीं है। किन्तु इस बीसवीं शताब्दी में भूमि का जितना उत्खनन हुआ है, उतना अतीत में कभी नहीं हुआ। जितना दोहन पदार्थों का हुआ है, उतना अतीत में कभी नहीं हआ। बहुत बार विकल्प आता है—वर्तमान पीढ़ी भूमि का इतना दोहन कर लेगी, इतना उत्खनन कर लेगी तो शताब्दी के बाद आने वाली पीढ़ी यही कहेगीहमारे पूर्वज बिल्कुल नासमझ थे। उन्होंने हमें दरिद्र बनाकर छोड़ दिया। स्वयं सुविधा भोगते रहे और हमें विपन्नता के वातावरण में जीने के लिए विवश कर दिया। ऊर्जा के लिए पेट्रोल का, गैस का, धातुओं या कोयले का, इतना अधिक उत्खनन हो रहा है कि पता नहीं आने वाले सौ दो-सौ वर्षों में भूमि का क्या हो जाए? वैज्ञानिक यह बता रहे हैं- भूकम्प जैसी समस्याएं बढ़ जाएंगी, और भी दूसरी समस्याएं बढ़ जाएंगी। यद्यपि भूकंप का सही कारण भी ज्ञात नहीं हो सका है फिर भी अनुमान किया जा रहा है-यह समस्या अत्यधिक उत्खनन के कारण पैदा हुई है। प्रदूषित जल
हमारे पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण कारक है जल । वह भी दूषित हो रहा है । पीने के लायक पानी भी कम होता जा रहा है। उद्योगों के विषैले रासायनिक पदार्थ शहरों की शीवर लाइनें सीधे नदियों से जोड़ दी गई । समुद्री रास्ते से जा रहे जहाजो से करोड़ों टन तेल रिसता है। वह तेल का प्रवाह समुद्र के जल को दुषित बनाता है, फलस्वरूप समुद्री जन्तुओं का संहार होता है। वायु का प्रदूषण
वायु भी इतनी दूषित हो गई है कि सांस के माध्यम से हमारे शरीर के भीतर जहर पहुंचा रही है। जो लोग दिल्ली के भीतरी भाग में रहते हैं, आई० टी० ओ० के आसपास रहते हैं, वे बताते हैं-यह प्रदूषण आंख में जलन, नाक में जलन और पूरे शरीर में जलन सी पैदा कर देता है । दिल्ली में लाखों-लाखों वाहन दिन-रात
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