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महावीर का अर्थशास्त्र
सच है, किन्तु वह केवल समाजनिष्ठ नहीं है, स्वार्थी भी है। स्वार्थी और समाजनिष्ठ — दोनों का समन्वय होता तो नए अर्थशास्त्र का निर्माण होता । उसमें न केवल स्वार्थ की प्रेरणा होती, न केवल सामाजिक प्रेरणा होती, किन्तु दोनों का योग होता और वह योग वर्तमान समस्याओं का समाधान बनता ।
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सुविधा, शान्ति और सुख
यह एक तथ्य है— वर्तमान अर्थशास्त्रीय अवधारणा ने मनुष्य को अर्थ - सम्पन्न तो बनाया है, किन्तु सुखी कम बनाया है। सुविधा, शान्ति और सुख - यह त्रिपुटी है । सुविधा मिले, आवश्यकताओं की पूर्ति हो, मानसिक शान्ति और सुख भी मिले, ये तीनों हो तो पूरी बात होती है । इन तीनों की उपलब्धि कराने वाला अर्थशास्त्र ही आज अपेक्षित है । ऐसा अर्थशास्त्र, जो दूसरे के हित को विखण्डित न करे । जिससे अनेक सुविधाएं मिल जाएं, आवश्यकता की पूर्ति खूब हो जाए, किन्तु मन की शान्ति भग्न हो जाए, वह अर्थशास्त्र पर्याप्त नहीं होता । सुख भी मिले, शान्ति भी मिले, सुविधा भी मिले तो एक परिपूर्ण बात बनती है और यह अनेकान्त दृष्टिकोण से ही संभव है ।
आधुनिक अर्थशास्त्र ने सम्पन्नता का सिद्धान्त रखा और सम्पन्नता की दौड़ शुरू हो गई। वर्तमान अर्थशास्त्र की जो संकल्पजा सृष्टि है, उसकी कुछ संतानें हैं— उद्योग, यंत्रीकरण और शहरीकरण । सृष्टि का एक पुत्र है उद्योग । जितना उद्योग बढ़ेगा, उतनी सम्पन्नता बढ़ेगी। फलस्वरूप औद्योगिक दौड़ शुरू हो गई, अनेक राष्ट्र औद्योगिक राष्ट्र बन गए, अमीर बन गए, बहुत सम्पन्नता अर्जित कर ली। उद्योग के साथ यंत्रीकरण बढ़ा और यंत्रीकरण के साथ शहरीकरण बढ़ा। उद्योग के साथ आजीविका जुड़ी और गांव के लोग शहर में जाने लगे। शहर फैलते गए, मल्टीस्टोरीज बिल्डिंग बनती गईं, साथ ही परिपार्श्व में झुग्गी-झोपड़ियों की लम्बी कतारें भी । स्वर्ग और नरक — दोनों एक साथ हैं। इस धरती पर स्वर्ग देखना है तो स्वर्ग का दृश्य तैयार है और नरक को देखना है तो झुग्गी-झोपड़ियों के रूप में वह भी तैयार है । उद्योग से जुड़ी समस्याएं
उद्योग ने कुछ समस्याएं पैदा की, मनुष्य का ध्यान पर्यावरण की ओर गयापर्यावरण दूषित हो रहा है, भूमि, जल और वायु — सब दूषित हो रहे हैं। समस्या यहां तक बढ़ गई है कि उस समस्या के समाधान के लिए बड़े और औद्योगिक राष्ट्रों Satara विकासशील राष्ट्रों पर पड़ रहा है। इस समस्या पर विचार करने के लिए
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