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पर्यावरण और अर्थशास्त्र
आधुनिक अर्थशास्त्र समृद्धि का अर्थशास्त्र है। योरोपीय आर्थिक समुदाय के प्रतिनिधि डॉ० मैल्सहोल्ड ने कहा- 'पीछे लौटने का प्रश्न ही नहीं है, हमें और आगे बढ़ना है । धनी बने हैं, और अधिक धनी बनना है । समृद्धि प्राप्त की है, अभी और अधिक समृद्धिशाली बनना है । पर्यावरण की समस्या है, उसका समाधान हम खोजेंगे । ऊर्जा की समस्या है, उसका भी समाधान हम खोजेंगे। अगर सामान्य रियेक्टर से काम नहीं चलेगा तो फास्ट ब्रीडर रियेक्टर का प्रयोग करेंगे। कोई भी समस्या ऐसी नहीं है, जिसका समाधान न हो । किन्तु हमें आगे बढ़ना है, और अधिक धनी बनना है ।'
धनी बनने का शास्त्र
समृद्धि का यह अर्थशास्त्र अधिक से अधिक धनी बनने का अर्थशास्त्र है । यह अवधारणा इसलिए बनी है कि मनुष्य को केवल भौतिक मान लिया गया। कहा जा रहा है - मनुष्य केवल प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पैदा हुआ है। यदि उसकी आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं, उसे समृद्धि मिल जाती है तो फिर क्या शेष रहता है? उसके आगे जो कुछ करने को है, वह अर्थशास्त्र का विषय नहीं बनता । शायद अर्थशास्त्र को जीवन के अन्य पक्षों से कट कर दिया गया । वस्तुतः समाजशास्त्र हो या मानसशास्त्र, अर्थशास्त्र हो या राजनीतिशास्त्र - सब परस्पर जुड़े हुए हैं। केवल एक पहलू पर विचार करें और शेष सारे पहलुओं की उपेक्षा कर दें तो कभी सही समाधान नहीं मिल पाएगा ।
स्वार्थ सापेक्ष सामाजिक
इसमें कोई सन्देह नहीं है कि आधुनिक अर्थशास्त्र का मुख्य लक्ष्य रहा है— सबको रोटी मिले, कपड़ा, मिले, मकान मिले, कोई भूखा न रहे। इसके लिए पूंजीवाद ने एक प्रेरक तत्त्व खोजा – मनुष्य स्वार्थी है। स्वार्थ की प्रेरणा मिलेगी तो वह आगे बढ़ेगा। साम्यवाद ने प्रेरक तत्त्व यह खोजा - मनुष्य सामाजिक प्राणी है, समाज उसके लिए एक प्रेरणा है | ये दोनों एकांगी दृष्टिकोण हैं। मनुष्य स्वार्थी है, यह सच है, किन्तु वह केवल स्वार्थी नहीं है, सामाजिक भी है। मनुष्य समाजनिष्ठ है, यह भी
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