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व्यक्तिगत स्वामित्व एवं उपभोग का सीमाकरण अनेक हैं सीमाकरण के सूत्र
वाहन का भी सीमाकरण करें-'आज मैं इतने से अधिक वाहन का प्रयोग नहीं करूंगा। इतनी बार से अधिक वाहन का प्रयोग नहीं करूंगा । पदत्राण का भी सीमाकरण करें-'मैं इतने से ज्यादा जूते-चप्पल का प्रयोग नहीं करूंगा।
यात्रा का सीमाकरण करें—'आज मैं सौ किलोमीटर की सीमा से बाहर नहीं जाऊंगा।' यदि यह विवेक जग जाए तो आज जिस तरह से यात्रा में ऊर्जा और ईंधन का अपव्यय हो रहा है, उस पर काफी अंकुश लग जाए । व्यक्ति घर से दस कदम दूर किसी काम से जाता है और पूरे बाजार का चक्कर लगा आता है । निरुद्देश्य
और निष्प्रयोजन यात्रा करता रहता है। आधुनिक साधनों ने तो दुनिया को इतना छोटा बना दिया है कि प्रात: प्रस्थान कर आदमी देश के किसी भी कोने में जाकर शाम को पुन: घर आ सकता है। उपभोक्तावाद का परिणाम
समाज के ये दो चित्र स्पष्ट हैं—अनियन्त्रित उपभोग वाला समाज और नियंत्रित उपभोग वाला समाज। हिंसा और अशान्ति तथा अहिंसा और शान्ति–इन दोनों के सन्दर्भ में चिन्तन करें तो स्पष्ट होगा-अनियन्त्रण ने हिंसा, स्पर्धा, ईर्ष्या और आतंक को जन्म दिया है, अशान्ति और शोषण को जन्म दिया है। जहां उपभोग अधिक है, उपभोक्तावादी धारणा है, वहां शोषण अनिवार्य है। नियन्त्रित उपभोग वाले समाज ने न तो किसी का शोषण किया, न किसी को सताया। वह अपनी सीमा में रहा, उसने सीमा का अतिक्रमण नहीं किया। ___ फ्रांसीसी विचारक ज्यां बोद्रियो ने आधुनिक उपभोक्तावाद की मीमांसा करते हुए लिखा---'पहले वस्तु आती है तो वह सुख देने वाली लगती है । अन्त में वह दुःख देकर चली जाती है । पहले वह भली लगती है, किन्तु अन्त में बरी साबित होती है।'
भारतीय दर्शन का चिन्तन रहा-एक वस्तु आपातभद्र होती है और परिणाम विरस । भोगवादी प्रकृति का विश्लेषण करते हुए कहा गया- .
इक्षुवद् विरसा: प्रान्ते, सेविताः स्युः परे रसाः। इक्षु का सेवन बड़ी मिठास देता है किन्तु अन्त में उसके छिलके में कोई रस नहीं रह जाता, वह नीरस हो जाता है।
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