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________________ महावीर का अर्थशास्त्र और शासक के लिए कहा-राजा को इन्द्रियजयी होना चाहिए। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, ईर्ष्या-ये जो छह शत्रु हैं, राजा को इनका विजेता होना चाहिए। एक सामाजिक प्राणी के लिए इन्द्रिय-तृप्ति आवश्यक है तो इन्द्रियों का संयम भी आवश्यक है। यह सीमा-विवेक का सूत्र है—इन्द्रिय-तृप्ति करो, किन्तु एक सीमा में । उपभोग करो, किन्तु एक सीमा के साथ। उसके बाद संयम करो । यदि ऐसा हो तो यह संयम का अर्थशास्त्र बनेगा और जो संयम का अर्थशास्त्र बनेगा. वह अहिंसा का अर्थशास्त्र बनेगा, शान्ति का अर्थशास्त्र होगा। वर्तमान का एक दृष्टिकोण रहा-हम नैतिकता पर अभी विचार नहीं करेंगे, संयम पर विचार नहीं करेंगे, अहिंसा और शान्ति पर विचार नहीं करेंगे, जब समय आएगा तब करेंगे। इसका अर्थ है-जब तक वह समय न आए, तब तक समाज असंयम के परिणाम भोगता चला जाए। आज परिणाम हमारे सामने मुखर हो रहे हैं। उत्पादन के विषय में महावीर ने हमें जो विवेक दिया, जो आचारसंहिता दी, उससे अर्थशास्त्र के भी महत्वपूर्ण सिद्धान्त फलित होते हैं। यदि इनका अनुशीलन किया जाए, प्रयोग किया जाए तो वर्तमान समाज अनेक विकृतियों से बच सकता वितरण का सिद्धान्त दूसरा है वितरण का सिद्धान्त । आबादी बढ़ी और साधन कम हुए। साधनों पर राज्य का नियंत्रण बढ़ा। वितरण की समस्या पैदा हो गई। यह स्वर प्रखर बना–वितरण समान होना चाहिए। महावीर के समय में वितरण कोई समस्या नहीं थी, क्योंकि आबादी भी कम थी, प्राथमिक आवश्यकताओं के साधन भी इतने दुर्लभ नहीं थे और उपेक्षाएं भी कम थीं। आज विज्ञापनों ने आवश्यकताओं को बहत बढ़ाया है। उस युग में आवागमन और यातायात के इतने साधन भी नहीं थे। चौबीस कोस दूर की बात को पहुंचने में बहुत समय लगता था। आज के संचार साधनों और विज्ञापनों ने इतनी कृत्रिम आवश्यकताएं उभार दी हैं कि अब और तब के समय में कोई तुलना ही नहीं हो सकती । उस समय हर गांव अपनी आवश्यकता की चीज पैदा करता था और उसका उपभोग करता था। वितरण की समस्या का प्रश्न ही नहीं था। स्वदेशी का स्रोत गांधीजी ने स्वदेशी आन्दोलन चलाया और आज बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आगमन पर कुछ राजनीतिक दल फिर जिस स्वदेशी की बात कर रहे हैं, उस स्वदेशी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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