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________________ अहिंसा और शान्ति का अर्थशास्त्र ४३ पर अपना कब्जा कर रखा है वैसे ही मादक वस्तुओं के विक्रेताओं ने भी बाजार पर कब्जा कर रखा है। केवल बाजार पर ही नहीं, मनुष्य की चेतना पर भी कब्जा कर रखा है। मादक वस्तुओं का आदी व्यक्ति इनके अभाव में कैसे छटपटाता है, यह केवल वही जान सकता है। वह उस समय मरणान्तक कष्ट झेलता है। महावीर ने कहा-उत्पादन की भी सीमा करो। हर चीज का उत्पादन न हो । मादक वस्तुओं का न उत्पादन हो और न सेवन । जो पाप कर्मोपदेश हैं, पाप कर्म का कारण हैं, उनका भी वर्जन होना चाहिए। आर्थिक व्यवसाय की दृष्टि से जो सू उन्होंने दिए, वे अहिंसा और शान्ति की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। व्यवसाय-शुद्धि के सूत्र महावीर ने व्यवसाय के लिए साधन-शुद्धि के अनेक सूत्र दिए• कूट तोल-माप मत करो। • वस्तु दिखाओ कुछ और दो कुछ, यह मत करो।। • किसी की धरोहर का गबन मत करो। उपासक दशा सूत्र के टीकाकार अभयदेवसूरी ने लिखा-'उस समय मिलावट बहुत चलती थी, रिश्वत भी बहुत चलती थी।' मानव की यह प्रकृति सदा रही है, धन के प्रति उसकी लालसा हर युग में हर समय में रही है । मिलावट भी उस समय विभिन्न प्रकार से चलती थी रिश्वत भी बहत चलती थी। चाणक्य ने लिखा-'पानी में तैरने वाली मछली संभव है आकाश में उड़ने लगे, किन्तु राज्यकर्मचारी रिश्वत न ले, यह संभव नहीं।' मनुष्य की प्रकृति का सदा एक रूप रहा है। अर्थ के प्रति लालसा, सुविधा और इन्द्रियों का सुख-ये सदा काम्य रहे हैं और जब से इन्हें बौद्धिकवादी समर्थन मिला, तब से और भी ज्यादा उच्छंखलता आ गई । समाजवाद का आधार भी भौतिकवाद है पूंजीवाद का आधार भी भौतिकवाद है। जहां केवल भौतिकवाद है, वहां अर्थ, सुविधा और इन्द्रियसुख को ही प्रधानता मिलेगी, इसीलिए इस उच्छंखलता से हमें कोई आश्चर्य नहीं है। प्रश्न संयम और तृप्ति का मनुष्य के सामने 'सदा से दो मार्ग रहे हैं• इन्द्रिय-संयम का • इन्द्रिय-तृप्ति का प्राचीन अर्थशास्त्र ने भी इन्द्रिय-तृप्ति की बात सामने रखी। किन्तु यह निर्देश भी दिया-इन्द्रिय-तृप्ति करो, साथ-साथ इन्द्रिय-संयम भी करो। चाणक्य ने राजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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