________________
महावीर का अर्थशास्त्र
दृष्टिकोण रहा है किन्तु उसके साथ एक और भी दृष्टिकोण रहा है, वह है दुःखवाद का । सुख प्राप्य है, किन्तु जैसे-तैसे प्राप्य नहीं है ।
३८
महावीर के सामने संतुष्टि और सुख का प्रश्न गौण था, शान्ति का प्रश्न मुख्य था । जब शान्ति का प्रश्न मुख्य होता है, दृष्टिकोण बदल जाता है। जहां शान्ति का प्रश्न है, वहां, साधन-शुद्धि का विचार मुख्य होगा ।
महावीर ने एक गृहस्थ के लिए अर्थार्जन का निषेध नहीं किया । वे स्वयं अपरिग्रही थे, किन्तु उन्होंने गृहस्थ के लिए अपरिग्रह का विधान नहीं किया । यह सम्भव भी नहीं था । एक धर्माचार्य असम्भव बात कैसे कर सकते थे ? उन्होंने अनेकान्तवाद की दृष्टि से मध्यममार्ग बतलाया - एक गृहस्थ अपरिग्रही नहीं हो सकता, फिर भी उसे इच्छा का परिमाण करना चाहिए, अर्थार्जन में साधन-शुद्धि का विचार करना चाहिए ।
अर्थशास्त्र के तीन घटक
अर्थशास्त्र में तीन बातों पर मुख्य रूप से विचार किया जाता है
उत्पादन
वितरण
उपभोग
महावीर के समय उत्पादन का मुख्य स्रोत था कृषि । वह युग कृषि का युग था। उस समय उद्योग नहीं थे। मुख्य था कृषि का व्यवसाय । कृषि के सन्दर्भ में उन्होंने एक गृहस्थ को जो मार्ग-दर्शन दिया, वह यह है— कृषि में भी साधन-शुद्धि का विचार करो ।
साधन -शुद्धि के सूत्र
महावीर ने उत्पादन में साधन-शुद्धि के लिए पांच सूत्र दिए
• बंध न करना
बुध न करना
छविच्छेद न करना ।
अतिभार न लादना ।
भक्तपान का विच्छेद न करना
उन्होंने जिस व्रती समाज का निर्माण किया, उसके लिए ये पांच विधान किए• कृषि का व्यवसाय करते हो तो बन्ध का प्रयोग मत करो। बांध कर मत रखो, न पशुओं को बांधों, मनुष्यों को बांधो I
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org