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________________ अहिंसा और शान्ति का अर्थशास्त्र गांधी का दृष्टिकोण यह दृष्टिकोण आज के अर्थशास्त्र का है। प्रश्न है— महावीर का दृष्टिकोण क्या रहा? महावीर से पहले गांधी के दृष्टिकोण की चर्चा करें। महात्मा गांधी ने साम्यवाद के कुछ पहलुओं का विरोध किया। उद्योगवाद और केन्द्रवाद - इन दो पहलुओं का उन्होंने विशेष विरोध किया । उन्होंने कहा – सत्ता का केन्द्रीकरण और पूंजी का केन्द्रीकरण हिंसा को बढ़ाने वाला है। जहां-जहां सत्ता केन्द्रित होती है, पूंजी केन्द्रित होती है, वहां-वहां समस्याएं बढ़ती हैं।' गांधी की यह बात अक्षरश: सत्य सिद्ध हुई। जहां भी सत्ता और पूंजी का केन्द्रीकरण हुआ, वहां हिंसा बढ़ी। गांधी ने एक और मार्मिक बात कही- 'हिंसा की नींव पर खड़ा कोई भी शासन टिक नहीं सकता, साम्यवाद भी टिकेगा नहीं।' गांधी की कई दशक पहले की गई यह भविष्यवाणी सही निकली। हिंसा के आधार पर कोई भी वस्तु स्थायी नहीं हो सकती। इस आधार पर उन्होंने उद्योगवाद का विरोध किया। उद्योगवाद का परिणाम उद्योगवाद आर्थिक गुलामी का ही रूपान्तरण है, उसका एक पर्याय है । जैसे-जैसे उद्योग केन्द्रित होंगे, आर्थिक गुलामी की स्थिति अवश्य बनेगी, फलतः शोषण होगा । शोषण केवल समाज का ही नहीं होगा, एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र का शोषण करेगा। जिस राष्ट्र के पास औद्योगिक क्षमता बढ़ेगी, वह उस क्षमता का उपयोग दूसरे राष्ट्र के शोषण में करेगा । ३७ उद्योगवाद में दो बातें साथ चलती हैं— क्षमता और क्षमता के द्वारा शोषण तथा हिंसा । जहां उद्योगवाद को खुला अवकाश मिलता है, वहां युद्ध संघर्ष आदि समस्याएं उत्पन्न होती हैं । महात्मा गांधी ने उद्योगवाद के विरोध में विकेन्द्रित उद्योग की बात कही, केन्द्रीकृत पूंजी के प्रतिपक्ष में विकेन्द्रित पूंजी और ट्रस्टीशिप की बात कही । इसका अर्थ है - गांधी जी ने अहिंसा और शान्ति प्रतिपादन किया । सुखवाद की अवधारणा हम महावीर की ओर चलें । महावीर के सामने मुख्य प्रश्न था संयम का, शान्ति और अहिंसा का । जहां संयम और शान्ति है, वहां अहिंसा है । अर्थशास्त्र में मुख्य प्रश्न रहता है संतुष्टि का । जनता को आवश्यकताओं की संतुष्टि मिले। संतुष्टि और सुख - यह अर्थशास्त्र का मुख्य ध्येय रहा । सुखवाद एक दार्शनिक अवधारणा रही है। पश्चिम में सुखवादी दृष्टीकोण पर काफी विचार हुआ है। भारत में भी यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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