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अहिंसा और शान्ति का अर्थशास्त्र आधुनिक अर्थशास्त्र का उद्देश्य शान्ति नहीं है और अहिंसा भी नहीं है। उसका उद्देश्य है आर्थिक समृद्धि । प्रत्येक मनुष्य धनवान् बने, कोई गरीब न रहे, मनुष्य की प्राथमिक अनिवार्यताएं पूरी हों। इतना ही नहीं, वह साधन सम्पन्न बने । आर्थिक समृद्धि के लिए साधन के रूप में लोभ, इच्छा, आवश्यकता और उत्पादन बढ़ाने की बात भी स्वीकृत है। . कम्युनिज्म का उद्देश्य
कम्युनिज्म का उद्देश्य रहा सत्ता को हथियाना। जो निम्न वर्ग है, पिछड़ा या मजदूर वर्ग है, उसके हाथ में सत्ता आए । किन्तु कैसे आए, इसमें कोई विचार नहीं रहा, साधन-शुद्धि की कोई अनिवार्यता नहीं रही। अगर अच्छे साधन से आए तो अच्छी बात, किन्तु अच्छे साधन से न आए तो जैसे-तैसे सत्ता पर कब्जा किया जाए। अर्थशास्त्र में भी यही बात है। आर्थिक समृद्धि बढ़नी चाहिए। उसके लिए लोभ और स्पर्धा अनिवार्य मान लिए गए। जितना लोभ बढ़ेगा, अनिवार्यताएं बढ़ेगी, उतना उत्पादन बढ़ेगा, आर्थिक विकास होगा। जितनी स्पर्धा होगी, उतना ही आर्थिक विकास आगे बढ़ेगा। इस स्थिति में शान्ति और अहिंसा की बात गौण हो जाती
अर्थशास्त्र का उद्देश्य
यह स्वीकार करना चाहिए—अर्थशास्त्र के सामने शान्ति का प्रश्न मुख्य नहीं हैं, नैतिकता का प्रश्न भी मुख्य नहीं है । डॉ० मार्शल आदि कुछ उत्तरवर्ती अर्थशास्त्रियों ने स्वीकार किया है कि परिणामत: नैतिकता आनी चाहिए, किन्तु नैतिकता इसमें अनिवार्य नहीं है । केनिज ने कहा—'जब हम आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हो जाएंगे तब नैतिकता पर विचार करने का अवसर आएगा। अभी उसके लिए उचित समय नहीं है। अभी जो गलत है, वह भी हमारे लिए उपयोगी है।' अर्थशास्त्र उपयोगिता के आधार पर चलता है, इसलिए उसमें गलत कुछ भी नहीं है। जो उपयोगी है, वह सही है, वह हमारे लिए वांछनीय है।
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