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________________ शून्य नहीं रहेगा, प्राथमिक आवश्यकताएं सबकी पूरी होंगी। यह साम्यवाद का आकर्षण सपना था, और है। प्रेय और हित इस संदर्भ में महावीर के दर्शन की मीमांसा करें । प्रिय और हित-इन दो शब्दों पर ध्यान दें। एक बात प्रिय लगती है, किन्तु हितकर नहीं है। एक बात हितकर है, केन्तु प्रिय नहीं लगती। एक बात ऐसी भी हो सकती है, जो प्रिय भी है और हितकर भी है। हर व्यक्ति धनवान बने, स्वार्थ के मनोवेग को उभारें, जिससे संपदा का विकास हो—यह प्रिय है, किन्तु हितकर नहीं है । व्यक्ति में स्वार्थ वैसे भी बहुत तीव्र होता है। इस वैयक्तिक स्वार्थ ने समाज में काफी समस्याएं पैदा की हैं। इसे और तीव्र बनाने का प्रयत्न किया जाए तो परिणाम कैसा होगा, यह हम आज के समय को देखकर समझ सकते हैं। . हर व्यक्ति चाहता है-समाज में आर्थिक विकास हो, किन्तु प्रश्न है कि कैसे हो? इसकी प्रक्रिया क्या हो? आर्थिक विकास निर्विकल्प है। महावीर कहते हैं-आर्थिक विकास की बात करते समय इन बिन्दुओं पर विचार अवश्य करो • अहिंसा और साधन-शुद्धि • मूल्यों का ह्रास न हो • स्वार्थ की सीमा अहिंसा और साधन-शुद्धि ____ आर्थिक विकास के साथ कहीं हिंसा तो नहीं बढ़ रही है ? साधन-शुद्धि की दृष्टि से विचार करें आर्थिक विकास हो, किन्तु वह येन-केन-प्रकारेण नहीं । एक व्यक्ति आज सामान्य स्थिति में है। उसने किसी सम्पन्न व्यक्ति का अपहरण कर लिया। एक करोड़ की फिरौती मांगी। उसमें सफल हुआ गरीब से करोड़पति बन गया। आर्थिक विकास तो उसका हो गया किन्तु उसके लिए जो साधन अपनाए, जो प्रक्रिया अपनाई, क्या वह वाछनीय हो सकती है? प्राचीनकाल में एक चिन्तन रहा–प्रसिद्धि आदमी को विजय दिलाती है। एक व्यक्ति के मन में विकल्प उठा–मुझे प्रसिद्ध होना है । इसके लिए क्या करूं? किसी ने सलाह दी जाओ, बाजार में घड़ों को इकट्ठे रखो और लाठी से फोड़ो, बहुत प्रसिद्ध हो जाओगे। ऐसा न कर सको तो पहने हए कपड़ों को उतार फेंको, नग्न हो जाओ, एकदम प्रसिद्ध हो जाओगे। यह भी न कर सको तो गधे की सवारी करो, प्रसिद्ध हो जाओगे। प्रसिद्ध होने के ये सबसे सस्ते नुस्खे हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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