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महावीर कामशास्त्र
सव्वं विलवियं गीयं, सव्वं नर्से विडम्बितं।
सव्वे आभरणा भारा, सव्वे कामा दुहावहा । वासना को बढ़ाने वाले गीत, गीत नहीं, विलाप हैं। वासना को बढ़ाने वाले नृत्य और नाटक विडम्बना हैं, प्रदर्शन को बढ़ाने वाले आभरण भारभूत हैं । उच्छंखल वासना दुःख को बढ़ाने वाली है। यदि इतिहास उपलब्ध होता । ___महावीर ने संयम का एक अभियान शुरू किया, प्रयोग शुरू किया और उस समय जब आबादी आज जितनी नहीं थी, पांच लाख व्यक्तियों का एक समाज बनाया। वह महावीर के सिद्धान्तों को मानने वाला समाज था। पांच लाख लोग उस समय की दृष्टि से कम नहीं होते। लिच्छवी गणतंत्र का प्रमुख महाराजा चेटक महावीर के उस व्रती समाज का एक प्रमुख सदस्य था। पूरा जैन इतिहास आज प्राप्त नहीं है। भारतीय इतिहास में जैन तथ्यों की जितनी उपेक्षा हुई है, शायद किसी की नहीं हुई है। अनेक राजाओं, गणतंत्र के प्रमुखों, जैन सेनापतियों और सार्थवाहों का इतिहास आधुनिक इतिहासकारों ने गायब कर दिया। यदि उनका इतिहास आज हमारे सामने उपलब्ध होता तो लिच्छवी, वज्जी आदि गणतंत्र महावीर के अर्थशास्त्रीय सिद्धान्तों के आधार पर चलते थे, यह तथ्य स्वयं सिद्ध हो जाता। मौलिक अंतर
महावीर ने एक ऐसे समाज को हमारे सामने प्रस्तुत किया, जो संयमी और व्रती समाज था । व्रत और संयम के संदर्भ में हम आधुनिक अर्थशास्त्र और महावीर के अर्थशास्त्र की तुलना करें। पहला अन्तर तो मूल में ही दर्शन का आएगा। आधुनिक अर्थशास्त्र एकांगी भौतिकवाद पर आधारित है । महावीर के अर्थशास्त्र में भौतिकवाद एवं अध्यात्मवाद-दोनों स्वीकार है । आधुनिक अर्थशास्त्र ने एक लक्ष्य बना लिया है—मनुष्य को धनी बनाना है । महावीर के अर्थशास्त्र का लक्ष्य था--मनुष्य शान्ति के साथ, सुख के साथ अपना जीवन बिताए। क्योंकि शान्ति के बिना सुख नहीं मिलता। सुख शान्ति पूर्वक होता है। गीता में कहा गया
___ न चाभावयतः शान्तिः अशान्तस्य कुतः सुखम्। भावना के बिना शान्ति नहीं होती और शान्ति के बिना सूख का सपना भी नहीं लिया जा सकता।
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