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केन्द्र में कौन - मानव या अर्थ ?
यह आवश्यकता नहीं है।' हमारी कल्पना भी बहुत बार आवश्यकता पैदा कर देती
रेल के डिब्बे में दो यात्री आसपास बैठे थे। एक उठा। उसने आगे बढ़ कर खिड़की को बन्द कर दिया। दूसरा उठा और खिड़की को खोल दिया। एक नाटक शुरू हो गया। एक खोलता है, दूसरा बन्द कर देता है । टी. टी. आया। यात्रियों ने उन दोनों का नाटक बताया और अपनी परेशानी व्यक्त की। टी. टी. ने पूछा-तुम दोनों ऐसा क्यों करते हो? पहला बोला—मुझे गर्मी लगती है, घुटन महसूस होती है तो खिड़की क्यों न खोलूं? दूसरे ने कहा—मुझे सर्दी लगती है तो क्यों न बन्द करूं? टी. टी. ने दोनों को खिड़की के पास बुलाया और कहा-देखो ! दोनों ने ध्यान से देखा तो पता चला कि खिड़की में शीशा ही नहीं हैं। सचाई को न भुलाएं
- जब शीशा ही नहीं है तो बन्द करने से क्या लाभ और खोलने से क्या लाभ? हमारी काल्पनिक आवश्यकताएं, कृत्रिम अपेक्षाएं इतनी ज्यादा होती हैं कि हम सचाई को भुला देते हैं। महावीर इसीलिए कहते हैं कि तुम काल्पनिक आवश्यकता की सीमा करो, संयम करो। सुविधा की भी सीमा करो, संयम करो। महावीर ने यह नहीं कहा-केवल आत्मा सत्य है और जगत् मिथ्या है। उन्होंने व्यवहार को भी मिथ्या नहीं बतलाया। व्यवहार भी एक सचाई है। पौद्गलिक जगत् भी एक सचाई है। अपेक्षा, आवश्यकता और सुविधा-यह भी एक सचाई है, किन्तु इन्हें उच्छंखल मत बनाओ, मर्यादा का अतिक्रमण मत करो, इनकी एक सीमा निर्धारित करो। सीमा का भी एक बहुत अच्छा सूत्र प्रस्तुत कर दिया-जहां मूल को हानि न पहुंचे, शरीर, मन और भावधारा को हानि न पहुंचे। टी० वी० हमारी इन्द्रियों को हानि पहुंचाता है। कितने बच्चे इसके प्रबल आसक्त बन गए, कितने लोग आंखों की ज्योति मन्द कर बैठे । समाचार-पत्र में पढ़ा-ब्रिटेन में बच्चों के चश्में बहुत बिके । कारण खोजा गया तो पता चला-बच्चे टेलीविजन के बहुत निकट बैठकर देखते हैं, बहुत लम्बे समय तक देखते हैं, इसलिए आँखों की समस्या बढ़ रही है, चश्मे बढ़ रहे हैं। यह उच्छंखल और अतिशय वृत्ति है। अनावश्यक है विलासिता ___ महावीर ने कहा-विलास को समाप्त करा । विलासिता सर्वथा अनावश्यक है। इसका पूर्ण निरोध करो, संयम करो। यह बात कुछ कटु लग सकती है, किन्तु बहुत सच्ची है
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