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महावीर का अर्थशास्त्र पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है। एयरकंडीशनर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं । वातानुकूलित मकान सुविधाजनक तो है, किन्तु स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ।
एक प्रसिद्ध उद्योगपति बीमार हो गए। डाक्टरी दवा से स्वस्थ नहीं हुए। अस्पतालों और डाक्टरों से निराश होकर अन्त में वे एक प्राकृतिक चिकित्सक के पास गए। चिकित्सक ने उनसे पूछा-आप क्या खाते हैं ? कहां रहते हैं? उन्होंने सब बताया। सारी बातें चिकित्सक के ध्यान में आ गई। उसने कहा-आप एक काम करें । तीन घंटे गरम पानी में नहाएं । उन्होंने वैसा ही किया। दो चार दिनों में स्वास्थ्य लौटने लगा। एक दिन वे गर्म पानी के टब में बैठे थे। मन में विचार आया—यह कितनी मूर्खता है। दिन में आठ-नौ घंटे तो एयरकंडीशनर में काम करो, फिर तीन घंटे गरम पानी से स्नान करो । तत्काल अपने घर के एयरकंडीशनर को निकलवा दिया। तीन घंटे गरम पानी के टब में बैठने की आवश्यकता भी समाप्त हो गई।
वांछनीय नहीं है वह सुविधा
वह सुविधा, जो हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को हानि पहुंचाए, वांछनीय नहीं है। आज बहुत सारे पदार्थ ऐसे आ गए, जो एक बार सुविधाजनक लगते हैं, किन्तु अंतत: मन को विकृत बना देते हैं, मानसिक चंचलता पैदा कर देते हैं। जितने भी मनोरंजन के क्लब हैं और उनमें जो सुविधाएं दी जाती हैं, वे एक बार तो मन को अच्छी लगती हैं, किन्तु उसके बाद मन विकृति से भरता चलता जाता है। इसीलिए महावीर ने कहा-सीमा करो, ऐसी सुविधा को मत भोगो।
एक व्यक्ति से पूछा गया- 'शराब क्यों पीते हो?' उसने कहा-'मेरे लिए आवश्यक है।' 'क्यों आवश्यक है ? इससे क्या होता है?' 'इसके पीते ही सारा तनाव मिट जाता है।'
यह तर्क की भाषा है-शराब हमारे टेंशन को मिटाने के लिए आवश्यक है। महावीर ने कहा-इस काल्पनिक आवश्यकता की सीमा करो । यथार्थ की आवश्यकता रोटी और पानी है। यह शराब केवल काल्पनिक आवश्यकता है, जिसे तुम तनाव मिटाने के लिए जरूरी बताते हो । आज मादक वस्तुओं का जो बाजार प्रभावी है, वह काल्पनिक आवश्यकता के आधार पर बना है। इस विषय में महावीर से पूछा जाए-क्या करें तो महावीर कहेंगे—'संयम करो । यह तुम्हारे लिए जरूरी नहीं है। यह तुम्हारी कृत्रिम आवश्यकता है, तुमने इसे आवश्यकता मान लिया है, वस्तुत: यह
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