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________________ २० महावीर का अर्थशास्त्र कहा-आवश्यकताओं को समाप्त कर दो, उनका प्रयोग मत करो। उन्होंने इनके साथ 'संयम' शब्द का प्रयोग किया-इच्छा का संयम करो, आवश्यकता का संयम या सीमाकरण करो। मूलभूत आवश्यकताएं आवश्यकता क्या है और अनावश्यकता क्या है, इसे समझना भी जरूरी है। हम शरीर की मांग को पूरा करें, वह आवश्यकता है। भूख हमारे शरीर की मांग है, प्यास हमारे शरीर की मांग है। इस मांग को पूरा करें, यह आवश्यक है। विनयविजयजी ने आवश्यकताओं का एक चित्रण किया है-शरीर की जो पहली मांग है, वह है रोटी की मांग। दूसरी मांग है पानी की। तीसरी मांग है कपड़े की। चौथी मांग है मकान और वस्त्र की। ये शरीर की चार मूलभूत मांगे हैं, आवश्यकताएं वर्गीकरण आवश्यकता का आवश्यक वह है, जो शरीर की मांग को पूरा करें । आवश्यक वह है, जो इन्द्रिय की मांग को पूरा करे । हमारे जीवन का पहला तत्त्व है शरीर और दूसरा तत्त्व है इन्द्रिय । अलंकरण शरीर की मांग नहीं है । यह इन्द्रियों की मांग है । संगीत सुनना, चलचित्र देखना, स्वादयुक्त भोजन, सुखद स्पर्श-ये इन्द्रियों की मांगें हैं। महावीर ने, अध्यात्म के आचार्यों ने इन्हें अस्वीकार नहीं किया। उन्होंने माना-ये मांगें हैं और इस यथार्थ पर सामाजिक प्राणी चलता है, इसलिए इन्हें स्वीकृति दी। इससे भी आगे है मन की मांग । वह शरीर के लिए जरूरी नहीं है किन्तु यदि मन की चाह, तरंग को निरस्त कर दिया जाए तो मानसिक विकृतियां भी पैदा हो सकती हैं। इसलिए मन की मांग भी आवश्यक होती है। इससे आगे बढ़ें-पारिवारिक और सामाजिक संबंधों के निर्वाह की भी एक आवश्यकता है। परिवार बढ़ाना और सामाजिक संबंधों की स्थापना भी एक आवश्यकता है। विवाह करना, संतान पैदा करना, इन्द्रिय विषयों को प्राप्त करना, यह सारा एक मांग की आवश्यकता का वर्गीकरण विनयविजयजी ने किया है। मनुष्य का व्यक्तित्व महावीर की सारी कल्पना एक साथ आचार्य ने प्रस्तुत कर दी। यह सारा भौतिकवादी दृष्टिकोण है, पौद्गलिक दृष्टिकोण है। आधुनिक अर्थशास्त्री भी इन सब आवश्यकताओं का प्रतिपादन करते हैं और इन्हें पूरा करने की योजना बताते हैं। महावीर ने कहा-ये मांग या आवश्यकताएं हैं, इन्हें हम स्वीकार नहीं करेंगे, किन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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