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महावीर का अर्थशास्त्र मांग का क्षेत्र उससे भी छोटा है। इन तीन पर आधुनिक अर्थशास्त्र का ढांचा खड़ा
महावीर का अर्थशास्त्र
महावीर के अर्थशास्त्र के तत्त्वों पर विचार करें तो आधुनिक अर्थशास्त्र में चार बातें और जोड़ देनी चाहिए
सुविधा • वासना, आसक्ति या मूर्छा • विलासिता • प्रतिष्ठा
केवल इच्छा पूर्ति के लिए या केवल विलासिता के लिए सारा प्रयत्न नहीं होता। अर्थ का विकास जो मनुष्य करता है, उसका एक दृष्टिकोण बनता है सुविधा । उसे सुविधा चाहिए इसलिए वह अर्थ का संग्रह करता है। ..दूसरा तत्त्व है आसक्ति । न सुविधा की जरूरत, न आवश्यकता, केवल वासना की संपूर्ति । आज के विज्ञापन ऐसी वासना जागृत करते हैं जो अनावश्यक को भी आवश्यक बना देते हैं। उसे देखकर ऐसा लगता है कि इसके बिना तो हमारा जीवन चल ही नहीं सकता। यह वासना विज्ञापन के द्वारा जागृत होती है।
मनुष्य विलास के प्रति आकर्षित है । वह विलासिता की पूर्ति के लिए अधिकतम प्रयत्न करता है । विलास के लिए प्रभूत धन चाहिए । अर्थ मनुष्य की इस वृत्ति को पोषण देता है। ___ एक हेतु है प्रतिष्ठा, अहं का पोषण । कोई आवश्यकता नहीं है, फिर भी अहं के पोषण के लिए बहुत कुछ खरीदना पड़ता है। केन्द्र में कौन है?
इन सूत्रों के संदर्भ में अर्थनीति पर विचार-विमर्श करें। किस अर्थ की व्यवस्था में, किस सूत्र के साथ मनुष्य प्रधान बनता है और कहां अर्थ प्रधान बनता है। कहीं-कहीं मनुष्य गौण बन जाता है और अर्थ प्रधान या मुख्य बन जाता है। यह गौण और मुख्य का अन्तर जितना स्पष्ट होगा, हमें इस सचाई का बोध होगा-अर्थशास्त्र के केन्द्र में मनुष्य कहां है और अर्थ कहां है। अनियंत्रित इच्छा
आधुनिक अर्थशास्त्र का मुख्य सूत्र है-अनियंत्रित इच्छा ही हमारे लिए कल्याणकारी और विकास का हेतु है। जहां इच्छा का नियंत्रण करेंगे, विकास अवरुद्ध हो
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