________________
महावीर और अर्थशास्त्र
१२९ अनियंत्रित समाज तैयार है। सुखी और शान्त समाज चाहते हैं तो नियंत्रित समाज की अपेक्षा है।
प्राचीनकाल में मनुष्य के लिए समाज शब्द का प्रयोग हुआ है और पशुओं के लिए समज शब्द का व्यवहार हुआ है- समजस्तु पशूनां स्यात् समाजस्त्वन्य देहिनाम्।' हम चिंतनशील मनुष्य हैं किन्तु यह कहना गलत नहीं है कि मनुष्य जितना अनियंत्रित है, उतना शायद कोई नहीं है । प्राचीन ऋषियों ने कहा—'अग्नि में कितना ही ईंधन डालो, वह तृप्त नहीं होगी। समुद्र में कितनी ही नदियां आकर गिरे, वह भरेगा नहीं। तब पदार्थों से हमारी आकांक्षा कैसे भर जायेगी?
समस्या यह है कि हम दूसरों को सीमा में देखना चाहते हैं, किन्तु अपनी सीमा नहीं करते। यह समय और विवेक का तकाजा है कि व्यक्ति स्वयं अपनी सीमा करे। पर्यावरण और अर्थशास्त्र
पर्यावरण की समस्या सामने न आती तो मनुष्य कुछ चिंतन के लिए अवकाश ही नहीं निकालता, अंधी दौड़ में कभी रुकता ही नहीं। अब यह सोचना पड़ रहा है कि यह प्रदूषण न रुका तो मरने के सिवा और कोई चारा नहीं है। इसीलिए समस्या का आना भी एक दृष्टि से ठीक ही होता है। ___आज पर्यावरण की समस्या गंभीर रूप धारण कर चुकी है। इसके बारे में अभी हजारों वर्ष तक कुछ सोचना भी न पड़ता। आगमों में हम पढ़ते थे-छठा आरा आएगा तो ऐसा हो जाएगा, पर चिन्ता किसी को नहीं थी। आज मनुष्य को साफ दीख रहा है-छठा आरा बिल्कुल सामने खड़ा है। पर्यावरण की समस्या सामने है और मनुष्य अर्थशास्त्र में उलझा हुआ है । वह निरन्तर सम्पन्नता के सपने ले रहा है, जबकि विपन्नता पर्यावरण के रूप में उसके ठीक सामने खड़ी है। सम्यक् दृष्टिकोण
हमारा दृष्टिकोण एकांगी है और यह एकांगी दृष्टिकोण ही सारी समस्याओं का मूल है। अनेकान्त की दृष्टि से सोचते तो समस्याओं में इतना उभार न आता। मैं जो सोचता हूं, वह सच है और तुम जो सोचते हो, वह सच हो सकता है, ऐसा दृष्टिकोण जब तक नहीं बनेगा, हमारी समस्याओं का समाधान नहीं होगा। ___महावीर ने कहा-'सब धर्मों का मूल है सम्यक् दर्शन और सब पापों का मूल है मिथ्या दर्शन । हिंसा, असत्य, अब्रह्मचर्य, क्रोध, अहंकार-ये पाप हैं, किन्तु सबसे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org