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________________ १२८ महावीर का अर्थशास्त्र आज स्थितियां बदल गई हैं। आज युद्ध केवल अर्थ का हो रहा है, व्यापार का हो रहा है। आज के अर्थशास्त्र पर हम अंकुश नहीं लगाएंगे तो चिरकाल तक शान्ति नहीं पाएंगे। शान्ति को जितनी बातें आज हो रही हैं, उतनी और कब होती थीं? चारों ओर शान्ति के स्वर सुनाई दे रहे हैं किन्तु इसके लिए जो प्रयत्न होने चाहिए, नहीं हो रहे हैं । इसके लिए उत्पादन का सीमाकरण करना पड़ेगा, आयात-निर्यात का सीमाकरण करना पड़ेगा। उन वस्तुओं का उत्पादन बन्द करना ही पड़ेगा, जो देश को गर्त में ले जा रही हैं। मैं समझ नहीं पाता हूं कि ऐसी चीजों का उत्पादन क्यों किया जा रहा है ? यह एक असंदिग्ध सचाई है-इन्हें रोके बिना शान्ति-व्यवस्था कायम नहीं हो सकती । गलत कार्य को रोके बिना सही काम नहीं हो सकता। तीन प्रश्न तीन प्रश्न हमारे सामने हैं : • शान्ति अपेक्षित है या नहीं? • स्वतन्त्रता प्रिय है या नहीं? • पवित्रता और आनन्द चाहिए या नहीं? यह कोई नहीं कहेगा कि ये तीनों हमें नहीं चाहिए। अगर चाहिए तो फिर साधन जुटाने पड़ेंगे। संयम के बिना शान्ति नहीं मिलेगी। संतोष के बिना स्वतन्त्रता नहीं मिलेगी। पवित्रता के लिए साधन की शुद्धि करनी पड़ेगी। आनन्द चाहिए तो स्वस्थ रहना पड़ेगा। स्वस्थ केवल शारीरिक रूप से ही नहीं, मानसिक और भावात्मक रूप से भी रहना होगा। ___महावीर ने अपने अर्थशास्त्र की सीमा में कहा—कोई व्यक्ति चोरी न करे । चोर को चोरी करने में सहयोग भी न करे । चोर की चुराई हुई वस्तु नहीं खरीदे। उस समय इतनी बुराइयां नहीं थीं, किन्तु त्रिकालज्ञ महावीर पांच हजार साल बाद की बुराइयों को अपनी आंखों से देख रहे थे। इसीलिए महावीर ने भविष्य में भी आदमी के सुखी रहने के गुर बताए । आज अगर सुख, शान्ति की अपेक्षा है तो उनके बताए सूत्रों का मूल्य आंकें । सीकरण का विवेक दो प्रकार के समाज हमारे सामने हैं—अनियंत्रित समाज और नियंत्रित समाज । “अब निर्णय आपको करना है कि आप कैसा समाज चाहते हैं ? इस संदर्भ में किसी से कुछ मत पूछिए, अपने मन से पूछिए। अगर आप दुःखी समाज चाहते हैं तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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