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________________ महावीर और अर्थशास्त्र ९२७ सकता किन्तु अर्थ के बारे में आज जो चिंतन चल रहा है, उसे बदलना होगा तभी वह सबके लिए सार्थक बन सकेगा। हिंसा और अर्थ एक प्रश्न है-अहिंसा और अर्थ—इनका आपस में क्या संबंध है? जहां अर्थ है, वहां हिंसा अनिवार्य है। कहा भी गया है-'अर्थ अनर्थ का मूल है।' जितनी हिंसा होती है, अर्थ के लिए होती है। हिंसा के लिए अर्थ नहीं होता। हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के युद्ध के समय हम दिल्ली में ही थे। उस समय दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ प्रोफेसर आए। उन्होंने कहा—'आचार्यश्री ! आपके सामने तो बड़ी परेशानी खड़ी हो गयी होगी। इस समय भारत-पाक युद्ध चल रहा है और आप हिंसा को मानते नहीं हैं। मैंने कहा-'आप क्या कह रहे हैं? जैन राष्ट से अलग हैं क्या? जो राष्ट्र की स्थिति है वही जैनों की भी है। जैन लोग क्या सबके सब संन्यासी हैं? क्या गृहस्थ नहीं हैं ? क्या उन्हें सुरक्षा की जरूरत नहीं हैं ? अर्थ है तो हिंसा सामने रहेगी। जैन सम्राट् हुए हैं, जैन सेनापति हुए हैं। उन्होंने अनेक युद्ध लड़े हैं।' मेरी बात से उन्हें संतोष मिला। ___जहां अर्थ है, वहां हिंसा और अशान्ति रहेगी। महावीर ने सीमा और संयम करने का निर्देश दिया। इससे ऐसा ब्रेक लग जाता है कि फिर इसके बढ़ने की संभावना नहीं रहती। पचास वर्ष पहले यह बात समझ में नहीं आती थी, आज आ रही है क्योंकि हिंसा और अशान्ति बहुत बढ़ गई है। इसके लिए सबसे बड़ा उपचार है सीमाकरण। प्रश्न उपयोगिता का यह दृष्टिकोण नहीं होना चाहिए जो उपयोगी है, हम उसे ही स्वीकार करें । उपयोगी को स्वीकार किया जा सकता है, किन्तु सभी उपयोगी बातों को स्वीकार कर लिया जाये, यह ठीक नहीं है । जो आज उपयोगी है, वह कल नहीं भी हो सकता है। उसका तात्कालिक उपयोग है, त्रैकालिक नहीं है। हम तात्कालिक चीजों पर ज्यादा ध्यान देते हैं, त्रैकालिक पर ध्यान नहीं देते हैं। जितने भी अर्थशास्त्री हुए हैं, उन्होंने तात्कालिक पर ज्यादा ध्यान दिया। महावीर ने त्रैकालिक पर ज्यादा ध्यान दिया। संभव है कि वह बात, जो आज ठीक नहीं है, आगे चलकर ठीक लगे, इसलिए हम त्रैकालिकता की बात को न भुलाएं, उसका मूल्यांकन करें। युद्ध अर्थ का प्राचीनकाल में तीन बातों को लेकर युद्ध होते थे—जर, जोरू और जमीन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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