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सम्पादकीय
अपरिग्रह का प्रवक्ता निर्ग्रन्थ क्या रच सकता है अर्थशास्त्र का ग्रन्थ? महाप्रज्ञ की कृति 'महावीर का अर्थशास्त्र' खोल देती है बंद जिज्ञासा-पात्र उभरता है. मन में यह प्रश्न क्या अपरिग्रह का चिन्तन दे सकता है परिग्रह का दर्शन ? समाधान है गहराई में; ऊँचाई में अवस्थित हूं सतह पर, तराई में सहसा चेतना के अतल तल को चीरकर कौधती है एक विद्युत किरणआयुष्मन् महावीर के ध्वनि प्रकंपन पकड़ता था चेतना का कण-कण न केवल मानव देव दानव पशु-पक्षी ही नहीं वृक्ष और वनस्पति भी सुनते थे समझते थे भूलकर वैर-भाव त्याग अपना विभाव। महावीर का वचन शाश्वत सत्य का निर्वचन
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