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विलासिता, सुविधा - इन शब्दों में सम्मोहक शक्ति है। जो प्रिय नहीं लगते, वे मानवता के भविष्य के लिए अत्यन्त अनिवार्य हैं। इस अनिवार्यता की अनुभूति की महावीर और उनके सीमाकरण के सिद्धान्त को अर्थशास्त्र के सन्दर्भ में समझने की प्रेरणा देगी ।
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पूज्य गुरुदेव ने कल्पना की, प्रकल्प और संकल्प किया— 'महावीर के अर्थशास्त्र' कुछ सूत्रों पर चर्चा हो, जो मानसिक तनाव और पर्यावरण की समस्या में उलझे हुए मानस को समाधान दे सके। महापुरुष का संकल्प निर्विकल्प होता है इसलिए, वह चरितार्थ हो गया । चार सप्ताह ( ६ अगस्त से २८ अगस्त ९४ ) तक प्रति शनि और रविवार को चलने वाला उपक्रम बढ़ती हुई जिज्ञासा और उत्साह के साथ संपन्न हो गया । पाठक के लिए प्रस्तुत है 'महावीर का अर्थशास्त्र ।' मुनि धनंजयकुमार ने इसके संपादन में अनवरत श्रम किया। मुनि महेन्द्रकुमारजी ने बड़ी तत्परता के साथ इसका एक परिशिष्ट तैयार किया, जिसमें कुछ आधुनिक विचारकों के विचार बिन्दु संकलित हैं। इसमें मानवता के भविष्य का प्रतिबिम्ब है, यदि बिम्ब अपने प्रतिबिम्ब को पहचान सके ।
अध्यात्म साधना केन्द्र नई दिल्ली ११ सितम्बर १९९४
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- आचार्य महाप्रज्ञ
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