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________________ अहिंसा : व्यक्ति और समाज से सम्बद्ध महान् मानवीय कार्य हैं : आत्म-सुरक्षा के लिए अहिंसात्मक व्यवस्थायें लागू करना, सभी को आर्थिक उन्नति एवं न्याय उपलब्ध कराना, सम्पूर्ण पर्यावरण पर प्यार-भरी निगरानी रखना तथा ऐसी प्रक्रियाओं को जन्म देना जो आवश्यकताओं को पूरी करने वाली और समस्याओं का हल निकालने वाली हों। संक्षेप में, अहिंसक क्रान्ति अथवा अहिंसक रूपान्तरण ऐसे विश्व समुदाय की संरचना करना चाहता है, जो खुशियों एवं न्याय से ओतप्रोत हो-एक ऐसी दुनिया जिसमें न कोई किसी को मारेगा और न मारने की धमकी देगा, न मारने के कोई तकनीकी या सांस्कृतिक कारण बताये जायेंगे, न कोई भौतिक या सामाजिक परिस्थितियां बतलाई जायेंगी, जो नर-संहारक शक्तियों या नर-संहार की धमकियों पर आधारित है। वर्तमान परिस्थितियों के आमूलचूल परिवर्तन में आध्यामिक और वैज्ञानिक विकास को दैनिक जीवन में उतारना अत्यन्त सहायक सिद्ध होगा। आध्यात्मिक विकास से तात्पर्य नैतिक, कलात्मक और भावात्मक विकास से है, जो सभी महान् धर्मों की शिक्षाओं का प्रेरणापुञ्ज सार है। वैज्ञानिक विकास से अर्थ है प्रकृति और मानव के बीच कार्य-कारण वाले सम्बन्धों की अवधारणा को असत्य सिद्ध करना । अहिंसात्मक रूपान्तरण के लिए दोनों ही अवधारणाओं को समस्या समाधान वाले कार्यों में संयुक्त रूप से व्यक्त करना होगा । तदर्थ आत्मा, विज्ञान और कर्म के रचनात्मक, अन्तठी एवं प्रभावी संश्लेषण की आवश्यकता होगी। अहिंसात्मक संस्थागत विकास का वैचारिक आधार आध्यात्मिक प्रेरणा के प्राचीन प्रतीकों, समकालीन मस्तिष्क-शोध एवं सर्वव्यापी (सामाजिक विज्ञानों के प्रामाणिक कथनों द्वारा) अहिंसात्मक समस्या समाधान सम्बन्धी और संस्थागत विकास के वैचारिक केन्द्र बिन्दु के लिए ऐसा सुझाव दिया जाता है कि व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन किसी अच्छे या बुरे परिणाम के लिए इस बात पर निर्भर करता है कि व्यवहार के तीनों परस्पर-निर्भर पहलुओं--आवेगों, तकनीकी मामलों और शक्ति संबंधों को हम कैसे व्यवस्थित रख पाते हैं। स्त्री-पुरुष की पारस्परिक क्रिया से उत्पन्न जीवन की एकता के संबंध में प्राचीन इन यांग प्रतीक, जो ब्रह्मांडिकी विवेचना के लिए भी सक्षम है, वांछित, आध्यात्मिक-वैज्ञानिक, तार्किक सम्बन्धों को व्यक्त करने के लिए मूलभूत अलंकार-श्रृंखला प्रस्तुत करती है। इस प्रक्रिया में समकालीन मस्तिष्क सम्बन्धी अध्ययनों को भी सम्मिलित किया जा सकता है, जिनके अनुसार क्लिष्ट क्रियाओं को मोटे रूप से दो अर्द्ध-गोलाकारों की अन्तःक्रिया के रूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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