SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सार्वभौम अहिंसा केन्द्र वस्तु जैसे निरंकुश सता, आक्रमणकारी या वर्गविशेष के विरुद्ध न होकर मनुष्य के अन्तःस्थल में मानव-कल्याणार्थ हिंसा से मुक्ति पाना है । इस प्रकार सार्वभौम अहिंसक क्रान्ति वस्तुतः हम प्रत्येक मनुष्य के हृदय में बसी हिंसा के विरुद्ध क्रान्ति है। हम एक ऐसे युग में प्रवेश कर चुके हैं, जिसमें फ्रांस की क्रान्ति के तीसरे नारे को अन्य दो नारों के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु क्रियान्वित करना है। बिना भाईचारे की भावना के (जो अहिंसा का ही रूप है) न तो स्वतंत्रता और न ही समानता पनप या सुरक्षित रह सकती है। इस प्रकार का महान् अहिंसात्मक रूपान्तरण, जिसकी वर्तमान युग में उत्कट आवश्यकता है, केवल मानवीय इच्छा, उद्देश्यपूर्णता और प्राचीन आध्यात्मिक सत्यों के प्रति और भी सशक्त रूप से प्रेरित नेतृत्व पर ही आधारित नहीं है, अपितु यह हिंसक संस्थाओं, जैसे--राज्यों, अर्थव्यवस्थाओं और प्रौद्योगिकी की समस्या-समाधान सम्बन्धी असफलताओं और रुकावटों द्वारा भी उत्प्रेरित है । अतएव पूर्णतः भिन्न उपागम जो सोद्देश्य एवं आदेशास्मक हों, आकांक्षित एवं आवश्यक हों, अपनाये जाने चाहिए। अहिंसात्मक रूपान्तरण के कार्य अहिंसात्मक क्रान्ति केवल नकारती ही नहीं है अपितु समर्थन भी देती है। यह आनन्ददायक एवं रचनात्मक होनी चाहिए। हिंसकोत्तर सभ्यता उत्पन्न की जानी चाहिए जिसकी विशेषता होनी चाहिए आनन्दपूर्ण सजनात्मक और जीवन के हर क्षेत्र में न्याय । टॉल्स्टाय ने सुख की ओर इन शब्दों में आह्वान किया है : हो जा प्रसन्न ! हो जा प्रसन्न । प्रसन्नता ही है अर्थ और कर्म जीव का । लूट ले खुशियां सूर्य और तारागण से, घास और तरुओं से, पशु व मानव से । फिर भी रहो सावधान, न हो यह खुशी अवरुद्ध । अवरोध जताता है त्रुटियां, हमारी भूलें, आओ तलाशें उन त्रुटियों को, सुधारें उन्हें । और गांधीजी ने भी न्याय की महती आवश्यकता को एक ही वाक्य में समेट दिया है, "अहिंसा की प्रथम शर्त है जीवन के हर क्षेत्र में चहुं ओर न्याय ही न्याय ।" अतएव हिंसा की सशक्त पकड़ से अपने आपको मुक्त करने के लिए हमें अहिंसा का हाथ बहुत नरमी और चतुराई से पकड़ना होगा और फिर द्वन्द्वात्मक विरोध से द्विपक्षीय सहयोग की ओर आगे बढ़ना होगा, तावि जीवन-दशाओं में सुधार किये जा सकें। अतएव अहिंसात्मक समस्या समाधान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy