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________________ अहिंसा : व्यक्ति और समाज सकती है या उसका प्रशिक्षण दिया जा सकता है। हमारी मान्यता यह है कि अहिंसा में असीम शक्ति है और उसका प्रशिक्षण दिया जा सकता है । अहिंसा का सैद्धान्तिक स्वरूप __ अहिंसा-प्रशिक्षण के स्वरूप का निर्धारण किया जाए तो उसके दो रूप हो सकते हैं-सैद्धान्तिक और प्रायोगिक । सैद्धान्तिक प्रशिक्षण में दार्शनिक सत्यों का अवबोध कराया जाता है । अहिंसा के दार्शनिक पहलू अनेक हैं। उन सबकी चर्चा में प्रशिक्षण की बात बिखर सकती है। इस दृष्टि से यहां कुछ ऐसे बिन्दुओं को उल्लिखित किया जा रहा है, जिनको समझे बिना अहिंसा के प्रशिक्षण का कोई आधार भी नहीं बनता। दार्शनिक पृष्ठभूमि पर अहिंसा की मूल्यवत्ता प्रमाणित करने वाले पांच बिन्दु हैं ० आत्मा का अस्तित्व ० आत्मा की स्वतंत्रता ० आत्मा की समानता ० जीवन की सापेक्षता ० सह अस्तित्व आत्मा है । प्रत्येक आत्मा का सुख-दुःख अपना-अपना है । इस दृष्टि से आत्मा स्वतंत्र है। गणित की भाषा में आत्मा अनन्त हैं। उनकी कर्मकृत अवस्थाएं भिन्न-भिन्न हैं। पर स्वरूप की अपेक्षा से सब आत्माएं समान हैं। समानता का यह सिद्धान्त मनुष्य तक ही सीमित नहीं है। संसार में जितने प्राणी हैं, उन सबकी आत्मा समान है। कोई भी व्यक्ति निरपेक्ष रहकर अपने अस्तित्व को नहीं बचा सकता। इसी कारण जीवन को सापेक्ष माना गया है । सापेक्षता का सिद्धान्त प्रकृति के प्रत्येक कण पर लागू होता है। कहीं पर वृक्ष का एक पत्ता भी टूट कर गिरता है तो उसका प्रभाव पूरी सृष्टि पर पड़ता है। मैं रहूंगा या वह रहेगा, अहिंसा की परिधि में इस चिन्तन को स्थान नहीं मिल सकता । मैं भी रहूंगा, तुम भी रहोगे। यह भी रहेगा, वह भी रहेगा-इस प्रकार सह अस्तित्व की भाषा में सोचना अहिंसा का दर्शन है। अन्तर्जगत में अहिंसा के प्रयोग अहिंसा के सैद्धान्तिक पक्ष को समझने के बाद उसके प्रायोगिक स्वरूप को समझना आवश्यक है । प्रायोगिक के दो बिन्दु हैं—अन्तर्जगत् और बाह्य जगत् । अन्तर्जगत् में प्रशिक्षण का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है संवेग-संतुलन (Balance of Emotions) । मनोविज्ञान की भाषा में मानसिक उथलपुथल या उद्वेलन की अवस्था का नाम संवेग है । भय, क्रोध, जुगुप्सा, कामुकता, सुख, दुख आदि संवेग प्रतिक्रियात्मक भावों के रूप में अपना प्रभाव दिखाते हैं। मनुष्य जब तक वीतराग नहीं बन जाता, संवेगों के प्रभाव से मुक्त नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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