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________________ शांति और अहिंसा-उपक्रम अंधकार था, है और रहेगा। इसे दूर करने के लिए मनुष्य ने दीया जलाया, आज भी जलाता है और भविष्य में जलाता रहेगा। अंधकार की सत्ता कालिक है तो प्रकाश का अस्तित्व भी कालिक है । ऐसा कभी नहीं होता, जब अंधकार हो और प्रकाश का कोई उपाय न हो। अंधकार जितना सघन होता है, प्रकाश की अपेक्षा उतनी ही अधिक होती है। अंधकार रहेगा हीयह सोचक र मनुष्य कभी दीया जलाना बंद नहीं करता। अंधकार के विरुद्ध उसका संघर्ष तब तक चलता रहेगा जब तक उसे प्रकाश की आवश्यकता रहेगी। हिंसा थी, है और रहेगी। अहिंसा के लिए प्रयत्न हुआ है, हो रहा है और होता रहेगा। हिंसा और अहिंसा-दोनों की सत्ता कालिक है। हिंसा जितनी प्रबल होगी अहिंसा के लिए उतना ही तीव्र प्रयत्न करना होगा। संसार से हिंसा कभी समाप्त नहीं होगी, यह सोचकर मनुष्य की अहिंसक चेतना ने कभी उच्छ्वास लेना बंद नहीं किया । हिंसा के मुकाबले में अहिंसा की शक्ति कम नहीं है । अपेक्षा है उस शक्ति को जगाने की। शक्ति का जागरण तभी संभव है, जब उसका बोध हो, शोध हो, प्रशिक्षण हो और प्रयोग हो । संभव है अहिंसा का प्रशिक्षण हिंसा मनुष्य के संस्कारों में रहती है । निमित्तों का योग पाकर वह प्रकट होती है । आचारांग सूत्र में हिंसा के तीन कारण बताए गए हैं-प्रतिशोध, सुरक्षा और आशंका । कारण कुछ भी रहे हों, हिंसा का प्रशिक्षण नियमित रूप से चलता है। उसमें उत्तरोत्तर दक्षता बढ़ रही है। उसके लिए नए-नए साधन विकसित हो रहे हैं। आगे-से-आगे नई तकनीक खोजी जा रही है। अनेक प्रसंगों में इसका खुला प्रयोग भी हो रहा है। लगता है महावीर की इस वाणी को समर्थन मिल रहा है कि "अत्थि सत्थं परेण परं"-शस्त्र आगे से आगे तीक्ष्ण होता है, उसकी परम्परा चलती है। ___ अहिंसा के प्रयोग की बात तो दूर, उसके प्रशिक्षण की भी कोई व्यवस्था नहीं है । अहिसा का उपदेश बहुत दिया जाता है। उसके गुणगान बहुत किए जाते हैं। पर उसके प्रशिक्षण की बात कौन सोचते हैं । ऐसी स्थिति में यह आशा कैसे की जा सकती है कि अहिंसा आएगी और वह जीवन शैली से जुड़ेगी ? अधिक लोगों को तो यह विश्वास ही नहीं है कि अहिंसा कुछ कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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