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________________ अहिंसा : व्यक्ति और समाज शिक्षा-दोनों की संपूर्ति हो जाती है । अहिंसा के व्यावहारिक प्रयोग और अहिंसा का प्रशिक्षण विश्व के अनेक अंचलों में अहिंसक समाज की रचना की दृष्टि से अनेक व्यावहारिक प्रयोग चलाए जा रहे हैं। उनकी सार्थकता पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगा सकता । ये प्रयोग समाज को व्यावहारिक प्रशिक्षण देते हैं । यह स्वीकार करने में भी मुझे कोई कठिनाई नहीं है। फिर भी एक बात शेष रह जाती है और वह है अहिंसा की सामान्य प्रशिक्षण पद्धति की । हृदय परिवर्तन हुए बिना अहिंसा के क्षेत्र में किए जाने वाले प्रयोग कितने चिरंजीवी और कितने सफल होते हैं, यह अपने आप में एक समस्या है। इस समस्या का अहिंसा के क्षेत्र में काम करने वालों ने अनुभव किया होगा। प्रेक्षा ध्यान अहिंसा का वस्तुनिष्ठ प्रयोग नहीं है। वह केवल आंतरिक चेतना का रूपांतरण या हृदय-परिवर्तन का प्रयोग है। हमारा अभिमत है-हृदय-परिवर्तन के बिना सामाजिक विषमता को दूर करने और आर्थिक असमानता को मिटाने की जो बात कही जाती है, वह क्रियान्वित नहीं होती। बुराई को रोकने का शक्तिशाली माध्यम है, दण्डशक्ति का प्रयोग । बुराई की चेतना को बदलने का शक्तिशाली प्रयोग है, हृदय-परिवर्तन । अहिंसा में आस्था रखने वाला दण्डशक्ति पर भरोसा नहीं करता । उसका विश्वास हृदय-परिवर्तन पर होता है । इस अपेक्षा से कहा जा सकता है-प्रेक्षा ध्यान सामाजिक विषमता और आर्थिक असमानता के उन्मूलन का प्रयोग है। आचार्यश्री तुलसी द्वारा अणुव्रत आंदोलन का प्रवर्तन किया गया। उसके प्राण तत्त्व ये हैं अनावश्यक हिंसा न हो, निरपराध की हिंसा न हो, जातीय घृणा समाप्त हो, जाति-भेद और रंग-भेद के आधार पर हीनता और उच्चता की भावना समाप्त हो। सांप्रदायिकता के आधार पर संघर्ष न हो। मादक वस्तुओं के सेवन की प्रवृत्ति मिटे । यह वर्तमान की ज्वलंत समस्याओं के समाधान की दिशा में होने वाला महान संकल्प है। इनके लिए आंतरिक चेतना के रूपान्तरण या हृदयपरिवर्तन का प्रायोगिक उपक्रम है-प्रेक्षाध्यान । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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