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________________ ५८ अहिंसा : व्यक्ति और समाज के समर्थन के लिए पर्याप्त शक्तिशाली है । इसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि समाज को अहिंसा की अपेक्षा अच्छी व्यवस्था की जरूरत है। इस निष्कर्ष में जो सच्चाई है उसे मैं उलटने का प्रयत्न नहीं कर रहा हूं किन्तु सच्चाई का दूसरा पहलू, जिसकी हमेशा उपेक्षा की जाती है, उसे प्रस्तुत करना चाहता हूं। व्यवस्था के बारे में जितना ध्यान दिया गया, उतना ध्यान व्यवस्था के संचालन करने वाले के बारे में नहीं दिया गया । व्यवस्था समाज के लिए होती है। उसे संचालित करने वाला व्यक्ति होता है । व्यवस्था बहुत अच्छी है किन्तु यदि उसे संचालित करने वाला व्यक्ति अच्छा नहीं है तो क्या अच्छी व्यवस्था अच्छा परिणाम लाएगी? व्यवस्था को संचालित करने वाला व्यक्ति अच्छा है और व्यवस्था अच्छी नहीं है तो भी समस्या सुलझ नहीं पाएगी। अनेकान्त या समग्रता का दृष्टिकोण यह है-अच्छी व्यवस्था और उसे संचालित करने वाला अच्छा व्यक्ति, दोनों का योग । अहिंसा के प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य है-अच्छे व्यक्ति का निर्माण अथवा अहिंसानिष्ठ व्यक्ति का निर्माण । व्यक्ति को अहिंसा से प्रशिक्षित किया जा सकता है, समाज और राष्ट्र को नहीं। इस अवधारणा को सापेक्ष दृष्टि से ही स्वीकार किया जा सकता है। व्यक्ति और समाज को विभक्त नहीं किया जा सकता । व्यक्ति समाज से प्रभावित होता है और समाज व्यक्ति से प्रभावित होता है। दोनों में अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। व्यक्ति का अन्तर्जगत् उसकी वैयक्तिकता है। उसका विस्तार है समाज । सामाजिक परिवर्तन या क्रांति चाहे राजनैतिक हो या आध्यात्मिक, हम व्यक्ति को गौण नहीं कर सकते । प्रेक्षा ध्यान को भले ही हम सामाजिक अहिंसा के साथ सीधा न जोड़ें किन्तु परोक्षतः सामाजिक अहिंसा के साथ उसका सम्बन्ध स्वाभाविक है। व्यक्तित्व का रूपांतरण सरल कार्य नहीं है। हर व्यक्ति में विधायक और निषेधात्मक-दोनों भावों के स्रोत विद्यमान रहते हैं। निषेधात्मक भाव हिंसा को जन्म देते हैं और विधायक भाव अहिंसा को । सामाजिक वातावरण निषेधात्मक भावों को अधिक उभारता है इसलिए जाने-अनजाने में हिंसा की समस्या जटिल होती रहती है । आज उसकी जटिलता शिखर पर है । प्रेक्षात्र्यान निषेधक भावों से अप्रभावित रहने का प्रयोग है। यदि हम विधायक भाव के स्रोतों के साथ अपना सम्पर्क स्थापित कर सकें तो निषेधक भावों से अप्रभावित रहना हमारे लिए सरल है। चतन्य-केन्द्र प्रेक्षा का आशय हैकषाय क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित करना । व्यक्तित्व या चेतना के रूपांतरण का यह मौलिक सूत्र है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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