SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खादी और अहिंसा गृहस्थ अहिंसा और अपरिग्रह को सम्पूर्णतया स्वीकार नहीं कर सकता इसलिए अपने जीवन-निर्वाह के लिए उन साधनों को अपनाना चाहता है, जिनमें हिंसा और परिग्रह की अल्पता हो । किसी भी प्रकार के उद्योग का सर्वथा अभाव हो, यह कठिन है, किन्तु उसका तारतम्य अवश्य होता है। खादी-उद्योग में मैं अल्पारंभ, अल्प-हिंसा और अल्प-परिग्रह देखता हूं। जैन आगमों में अहिंसा का सूक्ष्म विश्लेषण देते हुए बड़े कल-कारखानों को महाआरम्भ और महा-परिग्रह का स्थान बताया गया है । मैं इस निर्णय में सबसे बड़ा यही लाभ देखता हूं कि यह अल्प-हिंसाजन्य वस्त्र है। खादी वस्त्रों के प्रति होने वाले सम्मान का आज अवश्य अवमूल्यन हुआ है किन्तु खादी के मूल में ठहरे हुए मूल्यों का महत्त्व आज भी कम हुआ हो, ऐसा मैं नहीं मानता। महात्मा गांधी ने जिन कारणों से चरखा आंदोलन का सूत्रपात किया, उनमें अहिंसा के साथ-साथ और भी अनेक कारण थे। विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, राष्ट्र की गिरती हुई आर्थिक स्थिति, स्वावलम्बन, गरीबी, बेकारी, बेरोजगारी, गांवों का विकास आदि अनेक राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान उन्होंने इस चरखे में देखा और इसलिए उन्होंने इस पर विशेष जोर दिया। इसमें से अधिकतर समस्याएं आज भी देश के सामने मुंह बाए खड़ी हैं। किन्तु चरखे का अवमूल्यन हो जाने और बड़े-बड़े कल कारखानों को अधिक प्रोत्साहन मिलने से देश की स्थिति दिन-प्रतिदिन उलझती ही जा रही है। विनोबाजी कहा करते थे कि चरखा गांधी की सबसे बड़ी सूझ है। इसका आशय यही है कि गांधीजी की सर्व-हित और सर्वोदय की कल्पना इस चरखे से ही साकार की जा सकती है। उन्होंने अपने सपनों का जो भारत अपनाया था, उसके आधार में चरखा ही था । चरखा यानी बेकारी और बेरोजगारी को दूर करने का साधन ; चरखा यानी स्वदेशी वस्त्रों का उत्पादन, जिनसे विदेशी वस्त्रों के आयात पर स्वयं असर जाए; चरखा यानी जनता की गरीबी को दूर करने का सरलतम उपाय, जिससे राष्ट्र आर्थिक दृष्टि से स्वयं समृद्ध हो; और चरखा यानी ग्रामों की आत्मनिर्भरता, ग्राम खुशहाली और ग्रामों का विकास । लेकिन गांधीजी के बाद इस आवाज में ढीलापन आ गया । परिणाम स्पष्ट है कि देश में गरीबी, बेकारी और बेरोजगारी ज्यों की त्यों कायम है, आथिक दृष्टि से भी वह अब तक आत्म-निर्भर नहीं बना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy