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________________ अहिंसा के विभिन्न रूप जैनधर्म में जितना मूल्य अहिंसा का है उतना ही सत्य का है। वास्तव में अहिंसा और सत्य-ये दो हैं ही नहीं। जहां अहिंसा नहीं है वहां सत्य नहीं होता। मूल में महाव्रत एक है और वह है-अहिंसा । सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह-ये सब उसी के सापेक्ष रूप हैं। अहिंसा वाणी के क्षेत्र में सत्य का रूप ले लेती है। पर-वस्तु के क्षेत्र में वह अचौर्य का रूप ले लेती है। इन्द्रिय-विषयों के क्षेत्र में वह ब्रह्मचर्य का रूप ले लेती है । अर्थ के क्षेत्र में वह अपरिग्रह का रूप ले लेती है। इस प्रकार विभिन्न सम्पर्कों में एक ही अहिंसा अनेक रूपों में प्रकट हो जाती है। साधारण लोग अहिंसा के विभिन्न पर्यायों को सरलता से समझ सकें, इसलिए उसके सत्य, अचौर्य आदि विभिन्न नाम रखे गए। तत्त्व की गहराई में जाएं तो अपरिग्रह अहिंसा से विभिन्न नहीं है और अहिंसा अपरिग्रह से भिन्न नहीं है । ब्रह्मचर्य, अचौर्य और सत्य के लिए भी यही बात है। हिंसा क्या है ? असत्प्रवृति मात्र हिंसा है। प्राणवध उसका एक अंग है। असत्य बोलना, चोरी करना आदि सब असत्प्रवृत्तियां हैं इसलिए ये सब हिंसा के प्रकार हैं। फिर भी न जाने ऐसा क्यों हुआ कि धार्मिक लोगों के मन में जीव-वध के प्रति जितनी ग्लानि है उतनी असत्य, अप्रामाणिकता, वासना और संग्रह के प्रति नहीं है। इससे यह प्रतीत होता है कि अहिंसा का हृदय पकड़ा नहीं गया। भगवान् महावीर ने स्थान-स्थान पर कहा है कि जो व्यक्ति हिंसा नहीं करता तो दोनों का परित्याग नहीं करता, वह सम्यग्-दर्शन को नहीं जानते । इस सूत्र में हिंसा और परिग्रह-दोनों पर समान बल दिया है। फिर भी हमारे धार्मिकों का ध्यान जितना हिंसा को छोड़ने की ओर जाता है उतना परिग्रह को छोड़ने की ओर नहीं जाता। इसलिए असत्य और अप्रामाणिकता की वृत्ति कम नहीं होने पाती। हमें इस प्रश्न को गहराई से समझ लेना है कि सत्य आदि महावतों की सम्यग् आराधना करके ही हम अहिंसा की सम्यग् आराधना कर सकते हैं, अन्यथा नहीं। इसलिए उसका बोध होना नितान्त अपेक्षित है। जैन तीर्थंकरों ने अहिंसा का जो विराट रूप हमारे सामने प्रस्तुत किया था वह हमारी धारणा में स्पष्ट नहीं है। इसलिए हम अहिंसा के बारे में कुछ विचित्र-सी कल्पना कर लेते हैं। यदि उसका विराट रूप हमारी कल्पना में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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