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अहिंसा : व्यक्ति और समाज
वहां चले आये जहां हिन्दुस्तानी मोहल्ले में हमने अपना पड़ाव डाला था।
मैंने उनसे पूछा : "मिस्टर कैलनबैक, आपको यहां रहना अटपटा तो नहीं लगेगा?"
उन्होंने हंसते-हंसते जबाब दिया :--'मेरे जीवन में एक समय ऐसा था जब मैं रंग की घृणा से भरा हुआ था। लेकिन आज तो कोई गन्दा हिन्दुस्तानी बच्चा रोता हो तो उसे प्रेम से उठाकर उसके नाक का रीट साफ करके उसे खेलाते-खेलाते छाती से लगा लेने का मन हो जाता है।" ऐसे सरल-हृदय श्री कैलनबैक के जीवन का लाभ हम भारत में न उठा सके। उनके हृदय में उमंग तो बहुत थी कि 'भाई, गांधीजी के साथ हिन्दुस्तान जाऊंगा और उस प्राचीन पुण्य भूमि में रहकर नयी-नयी साधना करूंगा।' परन्तु भगवान् की ऐसी इच्छा नहीं थी। वे गांधीजी के साथ हिन्दुस्तान आने के लिए रवाना हुए थे; दोनों इंगलैंड होकर यहां आने वाले थे। परन्तु उनके इंगलैंड पहुंचते ही ब्रिटेन यूरोप की लड़ाई में कूद पड़ा। श्री कैलनबैक को जर्मन होने के कारण एक निश्चित समय के लिये वहीं रहना पड़ा। सरकार ने उन्हें गांधीजी के साथ हिन्दुस्तान आने की इजाजत नहीं दी।
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