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________________ अहिंसक जीवनशैली के प्रयोग दिया गया। इस तरह करते-करते थोड़े अर्से में गांधीजी ने कैलनबैक को सब झंझटों से मुक्त कर दिया। और हर महीने १२०० रुपये खर्च करने वाले कैलनबैक का खर्च घटकर १०० से १२० रुपये मासिक पर आ गया। दिनोंदिन श्री कैलनबैक में विलक्षण परिवर्तन होता गया और हिन्दुस्तानियों के प्रति उनकी ममता इतनी बढ़ गई कि वे हिन्दुस्तानीमय बन गए। पश्चिमी ढंग के रहन-सहन में उन्हें अस्वाभाविकता लगने लगी, जरूरत से ज्यादा टीम-टाम मालूम हुई और छिछलापन जान पड़ा । हिन्दुस्तानी रहनरहन उन्हें कुदरत के अधिक अनुकल और अधिक समीप प्रतीत हुआ। सन् १६१३-१४ में फिनिक्स आश्रम में हिन्दुस्तानी वेश में फिरते हुए किसी गौरांग साधु का ख्याल करता है, तो मेरी आंखों के सामने छोटी सी धोती पहिने नंगे बदन बगीचे में सावधानी से फल-फूलों की देखभाल करते हुए श्री कैलन बैक आकर खड़े हो जाते हैं। मैं पूछता : "मिस्टर कैलनबैक ! आप इन पौधों की काट-छांट करते हैं, तब इतनी बारीकी और सावधानी क्यों रखते हैं ?" जबाब में गंभीर बनकर कहते : 'मिस्टर रावजीभाई ! क्या आप नही जानते हैं। कोई डॉक्टर छोटे बच्चे को नश्तर लगाते समय जितनी सावधानी रखता है, उतनी ही सावधानी फल-फूल के वृक्षों की कांट-छांट करते वक्त रखनी चाहिये । यह प्रनिंग'-काट-छांट इन पेड़ों के वास्तविक विकास के लिये ही की जाती है। हमारी तरह वनस्पति में भी जीव होता है। उसे लापरवाही से काट डालें और कटे हुए स्थान पर जरूरी लेप वगैरह न लगायें, तो उस पेड़ को दुःख हो और उसका दु:ख बढ़ जाये। मैं तो इस वनस्पति में यह सुख-दुःख की भावना देखता हूं।" __ मैं इस दयामय हृदय को समझता और मन ही मन उसे प्रणाम करता था। काम करते हुये कई बार जब कोई उनसे टकरा जाता और पश्चिमी पद्धति के अनुसार जरा विवेकपूर्वक बोल उठता : Very Serry-'बड़ा अफसोस है, तो कैलनबैक तुरन्त बोल उठते : Please don't speak a lie; you do not seem to be sorry-'मेहरबानी करके झूठ न बोलिये ; आपको अफसोस हो रहा है, ऐसा दीखता नहीं है।' इस प्रकार उन्हें बाहरीऊपरी शिष्टाचार भी पसंद नहीं था। फिनिक्स आश्रम की सोलह जनों की मंडली की व्यवस्था करने के लिये उन्होंने वॉल्कस्ट में दो-तीन दिन पहले ही डेरा डाला था। उन्होंने किसी गोरे सज्जन के मकान का एक कमरा थोड़े दिन के लिये किराये पर ले लिया था। बाद में जब गोरे लोगों को मालूम हुआ कि श्री कैलनबैक हिन्दुस्तानी सत्याग्रहियों की मदद करने वाले हैं और इसीलिये यहां आये हैं, तो उन्होंने कमरा खाली करने को कहा । श्री कैलनबैक खुशी से अपना बिस्तर लेकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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