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________________ क्रान्ति और अहिंसा न हों, जिनके वे हैं । वे उनके साथ बैठे-घूमें नहीं। उनके बच्चे उनके (गोरों के) बच्चों के साथ खेलें नहीं, पढ़ें नहीं, साथ-साथ रहें नहीं और बातचीत न करें। इस प्रकार सहृदयता का अभाव ऊंच-नीच के दर्प को जन्म देता है। दर्प दूसरे के प्रति घृणा के भाव पैदा करता है, घृणा का प्रतिकार आतंक उत्पन्न करता है और आतंक अपनी सुरक्षा के लिए हिंसा का सहारा लेता सहृदयता का अभाव, ऊंच-नीच का दर्प, घृणा और आतंक-ये हिंसा के बीज हैं । जब तक मानवीय एकता, समानता और स्वतंत्रता के मूल्यों का विकास नहीं होगा, ये बीज फलते-फूलते रहेंगे और अपने विषफलों से लोगों में उन्माद भरते रहेंगे। आत्मख्यापन की मनोवृत्ति भी इस प्रकार की घटनाओं में यदा-कदा कारण बनती है। एक अमरीकन इतिहासज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि इन हत्याओं के षड्यन्त्र में व्यक्ति की महत्त्वाकांक्षाएं अधिक काम करती हैं। उसके मत में पश्चिम के लोग आज आत्म-प्रसिद्धि के रोग से इतने ग्रस्त हो गये हैं कि वे येन-केन-प्रकारेण उसे प्राप्त करना चाहते हैं। किंग की हत्या के बाद जर्मन युवक नेता की हत्या इस तथ्य को अधिक पुष्ट करती है। व्यक्ति सोचता है कि किसी महापुरुष की हत्या कर सारे संसार में वह अचानक प्रसिद्ध हो जाएगा। कुछ भी हो, आज जो यह मानसिक और पागलपन बढ़ता जा रहा है, उसकी रोकथाम हुए बिना ये समस्याएं सुलझ सकें, यह सर्वथा असम्भव है। किंग की हत्या अहिंसा की पराजय नहीं, किन्तु महान् विजय है । इससे हिंसा की कायरता स्पष्ट परिलक्षित होती है । अहिंसा की अजेय शक्ति का यह एक ज्वलन्त उदाहरण है कि अहिंसा-निष्ठ एक नन्हा-सा आदमी भी समूचे देश की शक्ति को चुनौती दे सकता है । किंग ने अपना बलिदान देकर अहिंसा को बहुत तेजस्वी बनाया है। अब प्रश्न यह है कि अहिंसा-निष्ठ लोग इस चुनौती का सामना कैसे करें ? बहुत ही जटिल और उलझन भरा प्रश्न है यह । किन्तु यह निश्चित है कि हिंसा के हाथों अहिंसा हतप्रभ नहीं हो सकती। अपेक्षा यही है, कि इस प्रकार की घटनाओं से अहिंसा-निष्ठ लोग न निराश बनें और न ही उत्तेजित और उद्विग्न बनें । किंग की हत्या के बाद नीग्रो लोगों ने अमेरीका में आगजनी, लूटपाट और हत्याकाण्ड के जो दृश्य उपस्थित किए, अहिंसा में इनको वांछनीय नहीं कहा जा सकता। हिंसा तो यह चाहती ही है कि अहिंसा में उत्तेजना आए, वह भड़के और मेरा सहारा ले। अहिंसा-निष्ठ व्यक्ति इस प्रकार की परिस्थिति में यदि उत्तेजित हो जाते हैं तो मानना चाहिए, यह हिंसा की ही विजय है । काले लोगों से घृणा करने वालों ने किंग के शरीर की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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