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________________ ३० अहिंसा : व्यक्ति और समाज अहिंसा निस्तेज क्यों ? मैं इसका कारण अहिंसक लोगों की अहिंसा के प्रति होने वाली ईमानदारी को कमी मानता हूं। वे अहिंसा की आवाज तो अवश्य उठाते हैं, किन्तु वह आवाज केवल कंठों से आ रही है, हृदय से नहीं। गांधीजी ने राजनीति में भी अहिंसा का प्रयोग करना चाहा और आज उसके ठीक उल्टा अहिंसा में राजनीति का प्रयोग हो रहा है। यही कारण है, अहिंसा आज निस्तेज हो रही है। अहिंसा के निस्तेज होने का दूसरा कारण भी है । अहिंसा का अर्थ होता है किसी दूसरे प्राणी को न मारना, दूसरे को तकलीफ न देना, सबके साथ मैत्री और प्रेम-भाव रखना । इसमें अपने लक्ष्य के लिए स्वयं के मरने का, बलिदान होने का कहीं निषेध नहीं है और न ही उसे हिंसा ही माना गया है। किन्तु आज का अहिंसक जैसे मारने से परहेज करता है (पता नहीं उसमें मारने का साहस भी है या नहीं), उससे अधिक अपने मरने का, अपने को तकलीफ होने का और अपने प्राणों के प्रति प्रेमाकुल होने का ध्यान रखता है। उसने अपने नहीं मरने को भी अहिंसा का एक अंग बना लिया है । यह जड़ता की पराकाष्ठा है। कोई भी सिद्धांत बिना आत्म-बलिदान के सफल होना असंभव है । स्वयं हिंसा भी बलिदान के अभाव में सफल नहीं हो सकती। फिर अहिंसा, जिसका आधार ही त्याग और बलिदान है, बिना उनके कसे सफल हो सकती है ? आज अहिंसा को ईमानदार और बलिदानी व्यक्तियों की आवश्यकता है, अन्यथा इसकी आवाज का मूल्य अरण्य-रोदन से अधिक नहीं होगा। इसमें सन्देह नहीं कि आज के मनुष्य ने भौतिक, आर्थिक और बौद्धिक दृष्टि ने काफी विकास किया है । विकास की इस भूमिका पर पहुंचने के बाद भी इस प्रकार की निर्ममतापूर्ण घटनाओं का घटित होना इस तथ्य की ओर संकेत करता है कि भौतिक, आर्थिक, बौद्धिक अथवा अन्य किन्हीं भी मूल्यों पर आधारित प्रगति मानवीय मूल्यों के आधार के अभाव में वांछनीय परिणाम नहीं ला सकती। भौतिक विकास का अर्थ ही है प्रतिस्पर्धा का उभार, जिसका परिणाम संघर्ष और टकराव ही हो सकता है। मानवीय एकता और समान सम्बन्धों की अनुभूति के अभाव में हस्तगत होने वाली शक्ति विकास का नहीं, विनाश का ही कारण बनती है। इसलिए मेरे विचार से विकास का मानदण्ड बौद्धिक और भावना पक्ष दोनों का संतुलित रूप होना चाहिए। __ अमरीका में चल रहे वर्णात्मक संघर्ष की भूमिका में यह सहृदयता का अभाव ही काम कर रहा है । गोरे लोग अपने को ऊंचा मानते हैं। काले लोग उस होटल में खाना न खाएं, जिसमें वे खाते हैं। उन क्लबों के सदस्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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