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क्रान्ति और अहिंसा
नैव राज्यं न राजासीत्, न दण्डो न च दाण्डिकः ।
धर्मेणैव प्रजाः सर्वाः, रक्षिताः स्म परस्परम् ॥
---न वहां कोई राज्य था, न कोई राजा था, न कोई दण्ड था, न कोई दण्ड देने वाला था। सारी प्रजा धर्म से ही परस्पर रक्षित थी । ये सारे उल्लेख कल्पना मात्र हों, यह तो नहीं माना जा सकता। फिर साम्यवाद की परिणति भी शासन-विहीन राज्य (Stateless State) में होती है। यानी उसकी अन्तिम परिणति भी अहिंसा में ही होती है। इस स्थिति में अहिंसा से संपूर्ण संभावना को निकाल लें, यह उचित नहीं होगा।
___ इतिहास में ऐसे उदाहरण चाहे न मिलते हों, जहां अहिंसा से किसी क्रांति का सूत्रपात हुआ हो, पर ऐसे उदाहरण अनेक मिलेंगे जहां हिसा ने थककर आखिर अहिंसा में ही विश्राम लिया है। क्या यह स्वयं हिंसा की असफलता का ज्वलन्त प्रमाण नहीं है ? फिर इतिहास में ऐसा भी कोई उदाहरण नहीं मिलता, जब हिंसक क्रांति केवल हिंसा के बल पर अपनी मंजिल तक पहुंच पाई हो। मेरा तो विश्वास है कि कोई भी क्रांति यदि संपूर्ण रूप से हिंसा के आधार पर चली होती, तो आज तक मनुष्य जाति कभी की ही समाप्त हो गयी होती। हम सोचते हैं कि क्रांति से देश को आर्थिक समाधान मिल जाएगा, राजनैतिक समस्याएं सुलझ जाएंगी। हमारा सोचना शायद गलत न भी हो । किन्तु इतना मैं अवश्य कह सकता हूं कि वह क्रांति यदि हिंसा से आई तो हो सकता है वे प्रश्न एक बार हल हो भी जाएं। किंतु उसकी प्रतिक्रिया-स्वरूप होने वाले परिणाम इससे भी अधिक भयंकर होंगे। खुजली के रोग का ऐलोपैथी में इलाज तो है, लेकिन कहते हैं कि उस दवा से दूसरे-दूसरे इतने रोग उत्पन्न हो जाते हैं, जो उससे भी अधिक भयंकर होते हैं । ठीक यही स्थिति हिंसक क्रांति की होती है और इसके परिणाम आज का विश्व कुछ अंशों में भोग भी रहा है।
इस प्रकार क्रांति की सफलता और स्थायित्व मैं केवल अहिंसा में ही देखता हूं। यहां इतना अवश्य स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैं यहां हिंसा की सूक्ष्म परिभाषा में नहीं जा रहा हूँ। अहिंसक क्रांति से मेरा तात्पर्य है, बिना किसी रक्तपात, हिंसा, युद्ध और शस्त्रास्त्र के सहयोग से होने वाली क्रांति । सूक्ष्म अहिंसा में तो किसी प्रकार का दबाव भी नहीं दिया जा सकता। उसे तो केवल हृदय-परिवर्तन का सिद्धांत ही मान्य होता है। केवल हृदय-परिवर्तन के सिद्धान्त के आधार पर हम समग्र समाज-व्यवस्था को बनाए रखें अथवा वर्तमान समाज-व्यवस्था में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लायें, यह बहुत कम व्यावहारिक लगता है । किन्तु अहिंसा के साथ यदि सामूहिक दबाव या बाध्यता को स्वीकार कर लेते हैं, तब वह क्रांति के लिए सबसे अधिक सफल और उपयुक्त साधन बन जाता है।
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