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अहिंसा : व्यक्ति और समाज
पूरा-पूरा भान नहीं हुआ। नहीं तो गांधीजी के नाम पर ऐसा न चलता। गांधीजी ने मुख्य जोर इसी बात पर दिया था कि अहिंसा का ध्यान केवल व्यक्तिगत जीवन तक ही नहीं, सार्वजनिक जीवन में भी उसका स्थान है। बाकी, क्या अहिंसा की बातें धर्मों ने कम कही हैं ? जैन-धर्म तो व्यक्तिगत जीवन में अहिंसा का कितना बारीक विचार करता है ? प्राणीमात्र को कष्ट न हो, इसका भी खयाल रखता है । जैनी जंतुओं का नाश होना भी सहन नहीं कर सकते, जब कि दूसरी ओर वे ही लोग सेना का बचाव करते हैं। उन्होंने मांसाहार का भी निषेध किया है, लेकिन सेना तो चाहिए। इस तरह हमने सब धर्मों के साथ समझौता किया है। कहते हैं कि धर्म तो व्यावहारिक होना चाहिए; ऐसा धर्म, जो सारे धर्म का सफाया कर सकता है, ऐसा सुविधावाला धर्म, जो हमारी सुविधा के अनुसार बरते । धर्म के लिए कोई असुविधा, कठिनाई उठाने को तैयार नहीं ।
लेकिन मेरा कहना यह है कि भले ही दूसरे सब ऐसा कहें, पर गांधीवाले भी ऐसा ही कहते हैं तो गांधीजी का आना और जाना सारा व्यर्थ हुआ। अगर इस तरह गांधी-विचार का अर्थ करेंगे, तो बापू पर हम बहुत अन्याय करेंगे।
हकीकत यह है कि हिंसा-अहिंसा के विषय में हमारे मन में अब तक सफाई हुई ही नहीं। इसीसे इतने वर्षों में भी देश में हिंसा कम नहीं हुई। लोगों के मन में अब भी वह पड़ी है। लोग सोचते हैं कि गांधीजी और सुभाषबाबू इन दोनों के दो मार्ग हैं, देश को दोनों की जरूरत है और दोनों एक होंगे, तभी देश का काम होगा। वे यह मानते हैं कि जैसे हाइड्रोजन और
ऑक्सीजन के संयोग से पानी बनता है, वैसे ही देश का काम पार लगाने के लिए गांधीजी और सुभाषबाबू दोनों के मार्गों की जरूरत है । लोगों के मन में भ्रम है कि दोनों के संयोग से ही आज काम चल रहा है। अणु-युग में विज्ञान का आह्वान
लेकिन वास्तव में आज दुनिया अहिंसा की तरफ तेजी से आगे बढ़ रही है । विज्ञान ने आज मनुष्य के सामने एक समस्या पैदा कर दी है, जो पहले नहीं थी। हिंसा के जो साधन पहले मौजूद थे, उनसे कुछ प्रश्न हल होते थे, इसलिए हिंसा पलती थी । हिंसा से लाभ भी होता था, नुकसान भी । जितना लाभ होता, उतना हिंसा को आश्रय मिलता। लेकिन अब अणु-शस्त्र आये हैं, तो अब या तो अहिंसक समाज बनेगा या मानव-जाति ही खतम हो जायगी । यह समस्या विज्ञान ने मनुष्य के सामने खड़ी कर दी है। अणु-शस्त्रों के शोध के बाद आत्यंतिक हिंसा और आत्यंतिक अहिंसा एक-दूसरे के सामने हाथ बढ़ा रही है। मेरी श्रद्धा है कि ये अणु-शस्त्र मनुष्य को अहिंसा
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