________________
अहिंसा की शक्ति
२५
मन में नहीं हुआ है। कुल मिलाकर लोग ऐसा मान लेते हैं कि अहिंसा के बचाव के लिए थोड़ी हिंसा तो करनी ही पड़ती है। पुराने जमाने में तो भले-भले लोग ऐसा मानते थे। लेकिन आज गांधीजी के हो जाने के बाद भी हमारे मन में इस सम्बन्ध में एक समझौता हो गया है। पहले के धर्मों ने ऐसा ही किया है । उन्होंने मान लिया कि अहिंसा उत्तम है जरूर, लेकिन वह व्यक्तिगत जीवन में। समाज में तो हिंसा के साथ थोड़ा समझौता करना ही पड़ता है । ऐसा न किया हो, तो फिर रविवार के दिन पूरी श्रद्धा से बाइबिल पढ़ना और शेष छह दिन नये-नये हथियार गढ़-गढ़कर उनका ढेर लगाते जाना कैसे बनता ? ये बेचारे मानते हैं कि आगे चलकर जो समाज आयेगा, उसके लिए अहिंसा बहुत उपयोगी साबित होगी, लेकिन नजर के सामने जो समाज है, उसमें तो हिंसा वगैरह का व्यवहार चलाना ही पड़ेगा। इस तरह गांधीजी ने जो शिक्षण हमें दिया, उसे लोग गौण मानते हैं। इसका कारण यह है कि समाज में अभी तक नैतिक साधन की चाहिए उतनी प्रतिष्ठा नहीं हुई। गांधी के अनुयायी या तिलक के ?
_इसलिए मैं बहुत बार कहता हूं कि हम सब गांधीजी के अनुयायी भले कहलाते हों, लेकिन वास्तव में हममें से कई तिलक महाराज के ही अनुयायी हैं। लोकमान्य ने 'गीता-रहस्य' में अहिंसा का बहुत गौरव किया है, लेकिन बाद में कहा है कि 'इसका स्थान व्यक्तिगत जीवन में है, सार्वजनिक जीवन में अहिंसा नहीं चल सकती।' हममें से बहुत सारे लोकमान्य की इस मान्यता का ही व्यवहार में अनुसरण करते हैं और समाज-जीवन में आचरण करने का सवाल आता है, तब हिंसा-अहिंसा के बारे में समझौता कर लेते हैं।।
___ इसलिए फिर राइफल-क्लब खोलना हो, तो भी गांधीजी का नाम लेकर ही खोलते हैं। दावा किया जाता है कि 'डरकर भागने की अपेक्षा हिम्मतपूर्वक मरना बेहतर है।' और देखिये न ! दिल्ली में खुद गांधीजी की समाधि के पास बंदूकधारी सिपाही पहरा देता है। अहिंसा के पुजारी के साथ ऐसे बर्ताव से जरूर चोट लगती है। लेकिन ऐसे समय में तो विनोद कर लेता हूं। मराठी में कहावत है : 'अति झाले, हसु आलें।' मैं विनोद में कहता हूं कि यह तो गांधीजी की ही भूल है कि उन्होंने मरने के लिए दिल्ली पसंद की । दिल्ली में तो सब दिल्ली के ढंग पर ही होगा न ? हां, ये सैनिक समाधि के प्रति आदर के रूप में अपने शस्त्र नीचे रखकर खड़े रहते हैं, इसलिए प्रतीकात्मक रूप से ऐसा अर्थ निकल सकता है कि हिंसा अहिंसा के आगे सिर झुका रही है। क्या केवल सुविधा का धर्म पालकर ही सन्तोष मानना है ? .. लेकिन वास्तव में बात यह है कि अब तक हमें अहिंसा की शक्ति का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org