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________________ अहिंसा : व्यक्ति और समाज हुए मरना पड़े तो मर जायं । मृत्यु से हम न डरें। आत्मा कभी मरता नहीं, इसलिए हम नहीं मरते । मनुष्य में ऐसी निर्भयता आनी चाहिए । प्रेम से सब एक होकर निर्भयतापूर्वक सामनेवाले को जबाव दें कि आपके गलत काम में मदद नहीं करेंगे । यह है असल अहिंसा । डरते-डरते घर में बैठे रहें और लड़ाई में न जायं तो अहिंसा हो गयी, ऐसा नहीं। बल्कि लड़ाई में जाकर कहना चाहिए कि मैं मरने के लिए तत्पर हूं, लेकिन मारूंगा नहीं। यह ताकत है अहिंसा की और यही खरी शक्ति है । छोटा-सा बालक भी अहिंसा की शक्ति से हिंसा के बड़े राक्षस का मुकाबला कर सकता है। उसे इतना समझाना चाहिए कि 'मर जायेगा तो भी क्या होनेवाला है ? यहां कायम रहनेवाला कौन है ? भगवान् ने तेरे लिए जो दिन तय किया होगा, उसी दिन मरेगा, नहीं तो कभी नहीं।' ऐसी अहिंसा की शक्ति के सामने अणु-शक्ति भी कुछ नहीं कर सकती। यह युक्ति गांधीजी ने सिखायी। वास्तव में यह हमारे पुरातन ऋषि-मुनियों की युक्ति है। उसे ही फिर से गांधीजी ने हमारे सामने रख दिया। उन्होंने एक कदम आगे रखा और हमें सिखाया कि यह अहिंसा तो ऐसी जबरदस्त शक्ति है कि उसके द्वारा हम बड़े-बड़े सवालों को हल कर सकते हैं। उन्होंने इस अहिंसा की शक्ति का राजनैतिक क्षेत्र में प्रयोग करके बताया। हमें अहिंसा का आत्म-प्रत्यय नहीं हुआ लेकिन दुनिया और भारत के लोगों को भी कुछ शंका रह गयी है कि हमें जो स्वराज्य मिला है, वह केवल अहिंसा की शक्ति से नहीं । यह सही है कि स्वराज्य की प्राप्ति में दुनिया की परिस्थिति का भी काफी हिस्सा है। लेकिन मूल बात यह कि हमें अपने भीतर चाहिए उतना अहिंसा का अनुभव नहीं हुआ। वीर को शोभा दे, ऐसा अहिंसा का प्रयोग हमने किया नहीं। गांधीजी ने हमें वीरों की अहिंसा सिखाने की कोशिश की, फिर भी हमारी अहिंसा लाचारी की अहिंसा थी। गांधीजी जिस तरह का प्रतीकार चाहते थे, वैसा प्रतीकार न हो सका । लोगों को उन पर श्रद्धा थी और लोग उनके पीछे गये। लेकिन वह बलवानों की नहीं, दुर्बलों की अहिंसा थी। गांधीजी के मार्गदर्शन में यहां जो अहिंसक लड़ाई चली, उसमें हमने अहिंसा का टूटा-फूटा आचरण किया। मन में तो द्वेष रखते थे और ऊपर-ऊपर से अहिंसा का आचरण दिखाते थे। परिणामत: स्वराज्य आया, फिर भी हमें प्रतीति नहीं हुई कि हमने अहिंसा से स्वराज्य हासिल किया है। इस कारण अहिंसा का मजा खतम हो गया। अहिंसा की शक्ति का कुछ चमत्कार तो हमने देखा, फिर भी उस शक्ति का हमें अपने भीतर प्रत्यय नहीं मिला। इसीलिए आज तक हिंसा-अहिंसा के सवाल का अंतिम हल बहुतों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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