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________________ अहिंसा की शक्ति का निवारण एक विशिष्ट प्रकार के प्रतीकार से हो सकता है, इसका उसे दर्शन हुआ। जमाने की मांग का बल खैर, मैं कह यह रहा था कि निःशस्त्र प्रतीकार के मार्ग की खोज करने की एक ऐतिहासिक आवश्यकता निर्मित हुई और उसमें से महात्मा गांधी आये। यों तो उनकी बात लाखों लोग न मानते । बहुत होता तो उनको मुझ जैसे दो-चार चेले मिल जाते। लेकिन यह तो सारे देश में एक विचार फैला और उसका टूटा-फूटा अमल भी हुआ। अंग्रेजों द्वारा हथियार रखवा लिये जाने से एक विशिष्ट परिस्थिति निर्मित हुई। इससे गांधीजी की अहिंसा की बात को जमाने की मांग का बल मिला। ___ यहां अंग्रेजों का राज्य शक्तिशाली था, उनकी पकड़ जोरदार थी। उनका मुकाबला कैसे किया जाए ? इसकी अहिंसक युक्ति गांधीजी ने सिखायी। उन्होंने कहा कि “हम निर्वैर भी रहेंगे और सामना भी करेंगे।" दुनिया को यह एक बड़ा विचार मिला। उसमें निर्वैरता और प्रतीकार-वृत्ति दोनों मिल गये । परिणामस्वरूप समाज के लिए एक मार्ग खुला । निर्वैरता से प्रतीकार की शक्ति बढ़ी और प्रतीकार से निर्वैरता की। गांधीजी ने हमें ऐसी युक्ति बतायी कि सारे बड़े-बड़े शस्त्र बेकार बन गये । युक्ति यह कि अंग्रेजों को राज्य चलाने के लिए हजारों आदमियों का और करोड़-करोड़ जनता का सहयोग जरूरी है, वह सहयोग देना बन्द कर दिया जाय । ऐसा करें तो चाहे जितने शक्तिशाली अंग्रेजों का कुछ न चलेगा। हम सहयोग नहीं देंगे तो वे हमें मारेंगे या सतायेंगे, फिर भी हम उन्हें सहयोग नहीं देंगे। मर जायेंगे, लेकिन आपकी मरजी के मुताबिक काम न करेंगे। ऐसे आत्मबल की युक्ति गांधीजी ने सिखायी। निर्भयतापूर्वक 'ना' कहने की शक्ति एक आदमी को राक्षस ने पकड़ा। राक्षस उससे खूब काम कराता । आराम का तो नाम नहीं। जरा चूं-चपड़ की कि राक्षस धमकी देता कि "खा जाऊंगा।" उसे बैठने ही न देता। आखिर उस आदमी ने सोचा कि कब तक ऐसा चलेगा ? इसलिए एक दिन उसने कह ही दिया कि "जा, काम नहीं करता, तुझे खाना हो तो खा जा।" लेकिन राक्षस ने उसे खाया-वाया नहीं, क्योंकि एक बार खा जाने पर उसका काम कौन करता ? बाद में आदमी को हिम्मत आ गयी। उसने कहा : बगैर मजदूरी लिये काम नहीं करूंगा" तो राक्षस मजदूरी भी देने लगा। संक्षेप में सार यह कि यह 'ना' कहने की शक्ति, 'आपके गलत काम में सहयोग नहीं दूंगा' यह कहने की हिम्मत, हममें आनी चाहिए। ऐसा करते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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