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परिग्रह का मूल
२११ बात है और समाजवाद इस स्थूल बात को ही महत्त्व दे रहा है। धर्म के लिए यह अनादृत नहीं है किन्तु पर्याप्त भी नहीं है इसलिए वह मूर्छा रोग की चिकित्सा पर अधिक बल देता है। आसक्ति की ग्रंथि को खोलने का अधिक प्रयत्न करता है। उसके खुल जाने पर संग्रह का इलाज अपने आप हो जाता है।
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