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अर्थ-व्यवस्था के सूत्र
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को जन्म दिया है जो स्वयं उसको ही ग्रसने को तैयार है। यदि हम विचार करें तो पायेंगे कि अणु-शस्त्रों का निर्माण आर्थिक साम्राज्य के विस्तार के लिए ही तो हुआ ! प्राचीन काल में भूमिगत विस्तार की बात सोची जाती थी। आज आथिक साम्राज्य की बात प्रमुख बन गई है। मान लें एक छोटा राष्ट्र है, लेकिन थोड़ी भूमि और सीमित जनसंख्या पर भी यदि उसका आर्थिक साम्राज्य बढ़ जाता है तो वह सारी दुनिया पर अपना सिक्का जमा सकता है। कई छोटे-छोटे राष्ट्र आज आथिक साम्राज्य के कारण बहुत शक्तिशाली बन गए हैं । आर्थिक व्यवस्था के साथ सारा दृष्टिकोण ही बदल गया है। पहले लड़ाइयां होती थीं भूमि के लिए और आज संघर्ष चल रहा है आर्थिक प्रभुत्व के लिए, आर्थिक साम्राज्य को बढ़ाने के लिए। आर्थिक व्यवस्था का दूसरा सूत्र
आर्थिक व्यवस्था का दूसरा सूत्र है--आवश्यकता बढ़ाएं, कार्यक्षमता को बढ़ाएं और उत्पादन को बढाएं । इस सूत्र ने आर्थिक साम्राज्य का विस्तार किया लेकिन साथ ही साथ मनुष्य के लिए संकट और खतरे भी पैदा कर दिए। आवश्यकता बढ़ाने का पहला अर्थ है-संघर्ष । क्योंकि पदार्थ सीमित हैं, आवश्यकताएं असीम । खाने वाले अधिक, खाद्य वस्तुए कम ! एक ओर कहा जा रहा है आवश्यकताएं बढ़ाओ, दूसरी ओर कहा जा रहा है परिवार नियोजन करो। कैसा विरोधाभास है ! एक ओर आवश्यकता को बढ़ाओ और एक ओर आवश्यकता को घटाओ । इसका सीधा-सा अर्थ है-चेतना को घटाओ और पदार्थ को बढ़ाओ। चेतन घटे, पदार्थ बढ़े। सारा दृष्टिकोण ही पदार्थवादी हो गया है। मनुष्य जो चेतनाशील और विवेकशील प्राणी है उसको तो कम करना और पदार्थ या जड़ को बढाना ! यदि आवश्यकता बढ़ाने की बात नहीं होती तो शायद दृष्टिकोण ऐसा नहीं बनता।
दूसरी बात है-कार्यक्षमता बढाने की। इसमें भी मनुष्य की कार्यक्षमता बढ़ाने की बात कम है और यंत्रों की कार्य-क्षमता बढ़ाने की बात अधिक है। यंत्रों की कार्य-क्षमता बढे कि कौनसी मिल में कितना उत्पादन हो रहा है, कौनसी मशीनें ज्यादा उत्पादन कर रही हैं। सारा ध्यान यंत्रों की कार्यक्षमता बढ़ाने पर है। 'आदमी भला कितना उत्पादन कर सकता है ! इसका परिणाम है कि मजदूर कम होते जा रहे हैं और यंत्र उनका स्थान ग्रहण कर रहे हैं। बेकारी बढ़ रही है।
इस प्रकार यह फिर दूसरा प्रहार है मनुष्य पर, चैतन्य पर, कि जड़ की क्षमता को बढ़ाओ और मनुष्य की क्षमता को कम करो, मनुष्य को कम करो । अर्थ-व्यवस्था की इस अवधारणा ने मनुष्य पर और चेतना पर सबसे अधिक प्रहार किया है । जिस देश के कारखाने अधिक उत्पादन करते हैं उस
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