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________________ १६६ अहिंसा : व्यक्ति और समाज इसी विवेक के अभाव में मनुष्य ने एक ऐसी संस्कृति को जन्म दे दिया है जो उसे ही निगलने को तैयार हो रही है । ऐसी संस्कृति को जन्म देना तो शक्य था पर करणीय नहीं था, क्योंकि निगले जाने का परिणाम अब हमें ही भुगतान पड़ रहा है । बुद्धिहीन वैज्ञानिक और बुद्धिमान् अवैज्ञानिक 1 1 चार मित्र थे। तीन बुद्धिहीन वैज्ञानिक थे और एक बुद्धिमान् अवैज्ञानिक | चारों घूमने निकले । एक घने जंगल में गए और एक सघन वृक्ष के नीचे बैठ गए। इतने में एक की दृष्टि वहां पड़ी जहां शेर की अस्थियों का पूरा ढांचा पड़ा था । शेर को मरे कुछ समय बीत गया था, केवल उसका कंकाल रह गया था । उसने कहा – 'देखो, आज हमारी विद्या की परीक्षा का अच्छा अवसर प्राप्त हुआ है । हम शेर को जीवित कर सकते हैं ।' एक वैज्ञानिक मित्र बोला, मैं इसमें मांस का संचार कर सकता हूं। दूसरा बोला, मैं इसमें रक्त को प्रवाहित कर सकता हूं और तीसरा बोला, मैं इसमें प्राण भर सकता हूं, । तीनों ने सोचा परीक्षण होगा, कुतूहल होगा, चमत्कार होगा । चौथा बोला- 'यह मत करो। ऐसा करना खतरे से खाली नहीं है । शेर जीवित होगा और हमें ही अपना शिकार बनायेगा । यह आत्मघाती प्रयत्न है, ऐसा मत करो' । तीनों एक साथ बोले- 'तुम मूर्ख हो, अवैज्ञानिक हो। तुम नहीं जानते कि सृजन करना कितना महान् कार्य है ! सदा निषेध ही निषेध करते रहते हो । हम मरे हुए शेर को जिन्दा कर रहे हैं, यह कम काम नहीं है ।' वह बोला- 'मैं जानता हूं कि निर्माण करना बहुत बड़ा काम है । पर मैं यह भी जानता हूं कि वह निर्माण खतरनाक होता है जो विध्वंस को जन्म देता है । इस निर्माण की परिणति होगी विध्वंस । निर्माण सदा अच्छा ही नहीं होता और विध्वंस सदा बुरा ही नहीं होता । विध्वंस भी अच्छा हो सकता है, और निर्माण भी बुरा हो सकता है ।' उसने बहुत समझाया, पर तीनों मित्र उसकी बेसमझी की मजाक करते रहे। तीनों उस शेर के कलेवर के पास पहुंचे । चौथा अवैज्ञानिक मित्र ऊंचे पेड़ पर चढ़ गया । एक ने उसमें मांस का और दूसरे ने उसमें रक्त का संचार किया। तीसरे ने ज्योंही उसमें प्राण का संचार किया कि शेर जीवित हो उठा और दहाड़ने लगा। तीनों अपनी सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त कर ही रहे थे कि शेर ने तीनों का काम समाप्त कर अपनी भूख शांत की। पेड़ पर बैठे अवैज्ञानिक, किन्तु बुद्धिमान् मित्र, अपने तीनों साथियों की मूर्खता से निष्पन्न स्थिति पर रो पड़ा और अकेला घर आ गया । सर्वभक्षी अर्थ व्यवस्था आदमी जाने-अनजाने में ऐसा निर्माण कर देता है, ऐसी संस्कृति को जन्म दे देता है जो सर्वभक्षी बन जाती है । आज उसने ऐसी ही अर्थ-व्यवस्था Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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