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________________ समूह-चेतना का विकास १६३ यदि नैतिकता को कोई सशक्त व्यावहारिक आधार मिल सका तो व्यक्ति-चेतना के जागरण का स्थान समूह-चेतना को मिल सकता है। मूर्त के प्रति आकर्षण पैदा होने से नैतिकता को भी आधार मिल सकता है और उससे सामूहिक परिवर्तन भी संभव है । पर इसके लिए केवल निषेधात्मकता पर्याप्त नहीं है। क्योंकि केवल नकारात्मक दृष्टिकोण सामूहिक हितों का विघटक-सा प्रतीत होता है । विघटक तत्त्व किसी का आधार नहीं बन सकता । नैतिकता की भावना एक मूर्त आधार है । कुछ देशों में राष्ट्रप्रेम को उत्कट रूप देकर उसके आधार पर अनैतिकता को समाप्त करने का प्रयास हुआ है। राष्ट्रीयता की सीमा से ऊपर का एक तत्त्व है, मानवता के प्रति प्रेम । आत्मौपम्य की वृत्ति से प्रेम-भावना का विस्तार होता है । मनुष्य के मन में मानवीय करुणा का जागरण हो जाए तो अनैतिकता का निर्मूलन हो सकता है। इसके लिए कुछ व्यक्तियों ने प्रयास किया है, पर वह सीमित दायरे में हुआ है । व्यापक स्तर पर कोई प्रयास हो तो इस दिशा में बहुत अच्छा काम हो सकता है। मनुष्य के मन में अपने आत्मीय जनों के प्रति सहज प्रेम होता है। जिनके प्रति उसका आन्तरिक स्नेह होता है, उनके प्रति वह अनैतिक नहीं बन सकता । एक व्यापारी खाद्य-पदार्थों में मिलावट कर बेचता है । ऐसा करते समय उसके मन में झिझक भी नहीं होती । किन्तु वही व्यक्ति अपनी पत्नी और बच्चों के प्रति क्रूर नहीं हो सकता; क्योंकि वहां प्रेम का विस्तार है। सीमाहीन प्रेम का विस्तार अध्यात्म की सबसे बड़ी उपलब्धि है । इस उपलब्धि के प्रति जनमानस में आकर्षण पैदा हो सका तो समूह-चेतना के जागरण में कठिनाई नहीं होगी। आध्यात्मिक उपलब्धि के प्रति आकर्षण कैसे हो? ___ अणुव्रत का कार्यक्षेत्र प्रारम्भिक रूप से व्यक्ति-चेतना तक सीमित है। शासकीय स्तर पर कोई काम होता है, उसमें व्यक्ति-चेतना की जरूरत नहीं है । सरकार यदि चाहे कि उसे बड़े उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करना है तो वह तत्काल कानून बना सकती है । राष्ट्रीयकरण के अनुरूप वातावरण बनाने की उसे इतनी अपेक्षा नहीं होती। अणुव्रत शक्ति-प्रयोग में विश्वास नहीं करता, इसलिए वह वातावरण को महत्त्व देता है । वातावरण बनाने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति-व्यक्ति में अध्यात्म के संस्कार दिया जाएं। कालसौकरिक कसाई मगध का विश्रुत व्यक्ति था। वह प्रतिदिन सैकड़ों भैंसों की हत्या किया करता था। उसका पुत्र था सुलस । वह अभयकुमार के सम्पर्क में आकर पूर्ण अहिंसावादी बन गया। कालसौकरिक का उत्तराधिकारी उसका पुत्र सुलस था। उत्तराधिकारी पाने के लिए उसके सामने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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