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________________ १६२ अहिंसा : व्यक्ति और समाज चेतना के स्तर पर कोई काम नहीं कर सकती। जहां व्यवस्था का सहायक सामग्री के रूप में उपयोग होता है, वहां अध्यात्म-चेतना निखर सकती है। किन्तु समझौते में कई कठिनाइयां पैदा हो जाती हैं। सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि व्यवस्था अध्यात्म-चेतना पर हावी हो जाती है और परिवर्तन का मूल उद्देश्य पीछे छूट जाता है। उपलब्धि दो प्रकार की होती है-दष्ट और अदृष्ट । विज्ञान की जितनी उपलब्धियां हैं, वे दृष्ट हैं और उनसे प्रत्यक्ष रूप से भौतिक लाभ प्राप्त हो रहा है । अध्यात्म भौतिक लाभ पर नियन्त्रण करता है तथा उससे प्रातव्य आत्मोपलब्धि प्रत्यक्ष नहीं है । जो प्रत्यक्ष लाभ चाहते हैं वे परोक्ष में होने वाली उपलब्धि से आकृष्ट नहीं हो सकते । इसलिए आध्यात्मिक मूल्यों का अवमूल्यन हो रहा है और मनुष्य विज्ञान के प्रति अधिक आस्थावान् बनता जा रहा है। वैज्ञानिक उपलब्धियों ने मनुष्य को जितनी सुविधाएं दी हैं, उस रूप में अध्यात्म की कोई उपलब्धि नहीं है। अध्यात्म से बहुत बड़ी उपलब्धि हो सकती है, इस अभ्युपगम मात्र से अध्यात्म के प्रति जनता का आकर्षक बढ़ने वाला नहीं है । अणुव्रत आध्यात्मिक उपलब्धियों के प्रति आकर्षण पैदा करने का एक उपक्रम है किन्तु यह उन उपलब्धियों को प्रत्यक्ष रूप में प्रस्तुत करके ही आगे बढ़ सकता है । समूह चेतना और समाज विकास अध्यात्म के स्तर पर समाज में अब तक कोई व्यापक परिवर्तन नहीं हुआ है। कारण, अध्यात्म के प्रति व्यापक आकर्षण नहीं है और आकर्षण पैदा करने वाली व्यापक उपलब्धियां भी नहीं हैं। जो व्यक्ति आध्यात्मिक हैं उनका मानस भौतिक की ओर आकृष्ट हो रहा है, तब भौतिकवादी लोग अध्यात्म की शरण में कैसे आ सकेंगे? आध्यात्मिक क्रान्ति न होने का एक कारण यह हो सकता है कि अध्यात्मवादियों की मान्यता और यथार्थ भिन्न-भिन्न कोणों पर आधारित हैं । वे मान्यता अध्यात्म को देते हैं पर उसकी यथार्थता स्पष्ट करने वाले साधन उन्हें प्राप्त नहीं हैं । अध्यात्म जब मान्यता के परिवेश में बंध जाता है, तब यथार्थ का मूल्य भौतिकता को प्राप्त हो जाता है। ऐसी स्थिति में आध्यात्मिक स्तर पर व्यापक परिवर्तन होने की संभावना भी नहीं की जा सकती। अध्यात्म सूक्ष्म जगत् का विषय है और भौतिक स्थल जगत् का। स्थल की अपेक्षा सूक्ष्म सदा उलझन में रहता है । यह उलझन तब तक समाप्त नहीं होगी, जब तक अध्यात्म के सूक्ष्म रहस्यों को स्थूल परिधान में संसार के सामने प्रस्तुत नहीं किया जाएगा। फिर भी एक बात अवश्य है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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