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________________ अणुनत-प्रेरित समाज-रचना युग का चिंतन इतना आगे बढ़ चुका है कि अब कोई भी दल आर्थिक विषमता का खुला समर्थन नहीं कर सकता। किन्तु मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि क्या सभी समस्याओं का हेतु केवल आर्थिक विषमता ही है। वह बहुत बड़ा हेतु है, इसे मैं मानता हूं किन्तु एकमात्र हेतु नहीं मानता। समस्या का एकमात्र हेतु है वैचारिक विपर्यय । मनुष्य का दृष्टिकोण सही हो, विचार की भित्ति यथार्थ हो तो क्या आर्थिक विषमता टिक सकती है? वह इसीलिए टिक रही है कि मनुष्य का दृष्टिकोण यथार्थ नहीं है। जाति-भेद और रंगभेद की समस्या आज भी उग्र है । मनुष्य के प्रति मनुष्य का दृष्टिकोण सही नहीं है, इसीलिए वह चल रही है । अमरीका जैसा सभ्य और सुसंस्कृत देश आज रंग-भेद की समस्या में उलझ रहा है। हिन्दुस्तान जैसा धार्मिक देश आज जाति-भेद की समस्या से संत्रस्त है। गरीबी भी इसीलिए चल रही है कि मनुष्य के प्रति मनुष्य में पूर्ण प्रेम नहीं है, करुणा नहीं है। बेरोजगारी मिटाने के लिए श्रम, बुद्धि, परम्परा, मुक्त विचार और उचित संयोजन आवश्यक हैं । इनके होने पर भी गरीबी रहती है यानी कुछ लोग बहुत संपन्न हो जाते हैं और कुछ लोग बहुत विपन्न- इसका कारण प्रेम का अभाव ही है। यदि बौद्धिक क्षमता से संपन्न लोगों में अक्षम लोगों के प्रति प्रेम हो तो यह विषमता की स्थिति नहीं आ सकती । चालीस व्यक्तियों के परिवार को एक सक्षम व्यक्ति पाल लेता है। उसका हेतु क्या है ? यही तो है कि परिवार को वह अपना मानता है और उसके प्रति प्रेम का सूत्र जुड़ा रहता है। ___ आज उस प्रेम को विस्तार देने की आवश्यकता है। समूचे समाज को एक परिवार मान लेने की आवश्यकता है। राजनीति के विचारक कई दशकों पूर्व ऐसा मान चुके हैं । आश्चर्य और खेद है कि धर्म के विचारक आज भी इस सत्य को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। यदि आर्थिक समानता की बात किसी धार्मिक मंच से आती तो बहुत स्वाभाविक होती, किन्तु ऐसा नहीं हुआ। __ अपरिग्रह और असंग्रह के सिद्धांत की स्थापना भगवान महावीर ने प्रखर रूप में की। अन्य धर्माचार्यों ने भी उनका साथ दिया । किन्तु समाज के क्षेत्र में उसका व्यावहारिक प्रयोग किसी धार्मिक ने नहीं किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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