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________________ सामाजिक क्रांति और उसका स्वरूप समाज की व्यवस्थाएं परिवर्तनशील हैं। परिवर्तन का प्रभाव समाज के मूल्यों और भावनाओं पर भी होता है । जहां साधारण परिवर्तन से काम हो जाता है वहां क्रान्ति की अपेक्षा नहीं रहती। जहां परिवर्तन पर्याप्त नहीं होता, वहां स्थिति को रूपान्तरित करना पड़ता है। आमूलचूल रूपान्तरण का नाम है क्रांति । क्रांति का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है क्रमण करना, मूल स्थिति का लंघन कर दूसरी स्थिति में पहुंच जाना । देश, काल और परिस्थितियों के संदर्भ में जिन व्यवस्थाओं और जिन मूल्यों की उपयोगिता कम या समाप्त हो जाती है, उन्हें मिटा देना जागृत तथा चेतनाशील समाज का काम है । सामाजिक क्रांति का स्वरूप है समाज-व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन । परिवर्तन आंशिक भी होता है। आंशिक परिवर्तन सुधार कहलाता है। वह क्रांति का प्राग् रूप है । सुधार ऊपर से होता है और क्रांति मूल को बदल देती है। शरीर के किसी अववव पर कोई खरोंच आ गयी, उस पर मरहमपट्टी करना सुधार है। किसी अवयव पर फोड़ा हो गया, वह शल्य-चिकित्सा के बिना ठीक नहीं होता है, तब शल्य-चिकित्सा करायी जाती है। इस शल्यचिकित्सा को क्रांति का प्रतिरूप कहा जा सकता है। क्रांति गुणात्मक परिवर्तन नहीं, जात्यन्तर परिवर्तन है, क्योंकि इसमें स्वरूप बदल जाता है। ठंडे पानी को गर्म करना अथवा गर्म पानी को ठंडा करना गुणात्मक परिवर्तन है, इसलिए क्रांति नहीं है। गर्म पानी एक तापमान तक पहुंचने के बाद भाप बन जाता है । इसी प्रकार ठंडा पानी एक स्थिति तक पहुंचने के बाद बर्फ रूप में जम जाता है। यह स्वरूपान्तर ही क्रांति (रिवोल्युशन) है। एक समाज में स्त्रियों के लिए चूंघट रखने की पद्धति है । दाएं हाथ की ओर मोड़ने वाले घूघट को बाएं हाथ की ओर मोड़ना जात्यन्तर परिवर्तन नहीं है। इसमें केवल क्रम बदलता है, पर मूल स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहती है । क्रम परिवर्तन सुधार की कोटि में आता है । कुछ मूल्यों और व्यवस्थाओं में केवल सुधार की आवश्यकता रहती है, किन्तु जहां सुधार मात्र से जीवन पद्धति विकसित नहीं होती, वहां क्रांति को कोई टाल नहीं सकता। सामाजिक क्रांति-नेताओं का काम है या धर्माचार्यों का ? सामाजिक क्रान्ति का सम्बन्ध उन सबसे है जो समाज के परिपावं में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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