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________________ शोषण-विहीन समाज-रचना अणुव्रत का प्रारम्भिक लक्ष्य वर्तमान समाज में संशोधन करने का रहा। समाज को विकृत करने वाले तत्त्वों, भ्रष्ट आचरणों, अन्धविश्वासों व अर्थहीन रूढ़ परम्पराओं के विरुद्ध उसने एक सशक्त आवाज उठाई और समाज में नैतिक चेतना के वातावरण का निर्माण किया। इसी प्रक्रिया के मध्य उसे अनुभव हुआ- केवल संशोधन या सुधार की बात का महत्त्व अवश्य है, किन्तु व्यवस्थागत कठिनाइयों के बीच संशोधन या सुधार की बात का प्रभाव चिर-स्थायी रहना कठिन है। दूसरी बात - कोई भी आन्दोलन तब तक अपूर्ण ही होता है, जब तक वह जीने का एक समग्र दर्शन प्रस्तुत न करे । इन्ही सब प्रश्नों की ऊहापोह में पिछले दो-तीन वर्षों से शोषण-विहीन समाज-रचना की परिकल्पना सामने आयी । यद्यपि उसका लक्ष्य यहीं समाप्त नहीं हो जाता, फिर भी पहला लक्ष्य उसका यह निर्णीत किया गया। शोषणविहीन समाज-रचना के अभाव में सामाजिक मूल्यों में संघर्ष होना अनिवार्य है। इस स्थिति में सर्वोपरि महत्त्व नैतिक मूल्यों का नहीं होता, व्यवस्थागत मूल्यों का होता है । आन्दोलन मानसिक स्तर पर कार्य करे और व्यवस्थाएं सामाजिक स्तर पर भिन्न प्रभाव डालें, तो फिर दोनों में सामंजस्य नहीं बैठता। मनोमूमिका और व्यवस्था अलग-अलग पड़ जाते हैं और मनोभूमिका पर किया गया कार्य समाज की भूमिका तक आते-आते क्षीण हो जाता है। __ अणुव्रत का आधार संयम है। वह प्रत्येक समस्या को संयम के माध्यम से सुलझना चाहता है। उसका विश्वास है कि संयम ही मनुष्य को शान्तिपूर्ण जीवन की व्यवस्था दे सकता है । उस शोषण-विहीन समाज की रचना के मूल में भी संयम की प्रतिष्ठा ही होगी। संयम का रूप नकारात्मक है-यह बात बहुत सारे लोग मानते हैं। मैं ऐसा नहीं मानता। मेरे अभिमत से उसका सकारात्मक रूप भी है । जहां हम रचना की बात करते हैं, वह उसके सकारात्मक रूप से ही संभव है। शोषण-विहीन समाज का क्या स्वरूप हो, उसको लेकर अणुव्रत के सामने रेखाएं बहुत स्पष्ट हैं १. वह समाज अल्पेच्छा और अल्प अपरिग्रह को पहला स्थान देगा। अल्पेच्छा से तात्पर्य है कि उसकी आकांक्षाएं निरंकुश नहीं हों । आकांक्षाओं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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