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________________ स्वस्थ समाज - रचना का संकल्प १५३ घटना से एक निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हिंसा की शक्ति भी कमजोर नहीं है | अहिंसा को अगर हम शक्ति-शाली मानें तो हिंसा की शक्ति भी कम नहीं है । घटनाओं के आधार पर और इतिहास के साक्ष्यों के आधार पर तो यह कहा जा सकता है कि समय-समय पर हिंसा ने अपना जो रौद्र रूप दिखाया है, अहिंसा उतना सौम्य रूप नहीं दिखा पाई है। तो फिर हम पराजय स्वीकार कर लें कि समाज के लिए अहिंसा का मूल्य कोई स्थायी मूल्य या शाश्वत मूल्य नहीं है और हम हिंसा का वरण इसलिए करें कि हिंसा का मूल्य समाज के लिए ज्यादा कारगर है । किन्तु यह भी स्वीकार नहीं किया जा रहा है। जहां-जहां हिंसा की समस्या उग्र बनायी है, तत्काल ध्यान अहिंसा की ओर जाता है। जहां विवाद उग्र होता है, वहां तत्काल ध्यान समझौते की ओर जाता है । सब कहते हैं कि हिंसा की समस्या सुलझनी चाहिए, विवादों का अन्त आना चाहिए । पंजाब की समस्या उग्र बनी। पूरे राष्ट्र का ध्यान केन्द्रित हो गया कि आतंकवाद समाप्त होना चाहिए, हिंसा की उग्रता अब नहीं चलनी चाहिए । इसका अर्थ यह है कि आदमी हिंसा चाहता नहीं, करता है । बस, चाहता अहिंसा है, चाहता शांति है किन्तु उन्माद आता है और उन्माद में वह हिंसा कर डालता है, शांति भंग हो जाती है । दो स्थितियां हैं। एक है उन्माद की स्थिति और दूसरी है शांत स्थिति । शांत स्थिति में आदमी अहिंसक मूल्य को महत्त्व देता है किन्तु उन्माद जब आता है, उस स्थिति में वह हिंसा कर लेता है । हिंसा स्वाभाविक या नैसर्गिक मांग नहीं है । वह एक अस्वाभाविक परिस्थिति है । हम कुछ कारणों से प्रभावित होकर उस दिशा में चले जाते हैं । यह बात समझ में आनी चाहिए कि समाज का मूल्य अहिंसा ही हो सकता। है और इसी आधार पर समाज बना है । वह नहीं होता तो समाज बनता ही नहीं । एक आदमी दूसरे आदमी को खाने और काटने को तैयार रहता । किन्तु सबसे पहला समझौता यही हुआ कि भई ! तुम भी अपनी सीमा में रहो और मैं भी अपनी सीमा में रहूं और हम दोनों साथ-साथ जीएं, समाज बन कर एं । आदमी अहिंसा की बात को भूल सा गया है । इस स्थिति में उपाय की बात सोचनी चाहिए कि किस उपाय से इस अहिंसा के मूल्य को पुन प्रस्थापित करें ? इस पर जब चिंतन करते हैं तो ऐसा लगता है कि एक औ प्रयोग किया जाए । वह प्रयोग यह हो कि बचपन से ही अहिंसा की आस्थ उत्पन्न की जाए । जब हिंसा की आस्था उत्पन्न हो जाती है, यह धारणा बन जाती है कि हिंसा के बिना काम नहीं चलता, फिर उसे बदलना बहुत जटिल हो जाता है । बचपन के संस्कार इतने प्रभावी होते हैं कि बाद में आने वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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