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________________ १५२ अहिंसा : व्यक्ति और समाज जैसे हैं ।' ये शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण हैं और गम्भीर अर्थ की सूचना देने वाले हैं । इस भावना के अभाव में जातीय विद्वेष पनपा, सांप्रदायिक विद्वेष पनपा और राज्य का सीमागत विद्वेष पनपा । यदि यह भावना विकसित होती कि सब जीव समान हैं, मेरी आत्मा के जैसी ही है दूसरे की आत्मा, जैसी सुख-दुःख की अनुभूति मुझे होती है, वैसी हो सामने वाले व्यक्ति को होती है, तो यह जातीय और साम्प्रदायिक आक्रोश-विद्वेष कभी पनप नहीं पाता । वर्तमान स्थिति क्या है ? एक काला आदमी है और दूसरा गोरा आदमी है । आदमी आदमी है, केवल चमड़ी का और रंग का अन्तर है । किन्तु गोरा आदमी अपने आपको श्रेष्ठ मान रहा है और काले आदमी को नीच मान रहा है । एक सवर्ण है, दूसरा असवर्ण है । सवर्ण अपने को श्रेष्ठ मान रहा है और असवर्ण को नीच मान रहा है । यह रंग के आधार पर विद्वेष, जाति के आधार पर विद्वेष, धारणाओं के आधार पर विद्वेष है । एक नाजी यहूदी को हीन मानता है और यहूदी नाजी को पागल कुत्ता जैसा मानता है । यह जातिगत विद्वेष है । विचारधारा के आधार पर भी यह विद्वेष पनपता है । एक सम्प्रदाय वाला दूसरे सम्प्रदाय वाले को हीन मान रहा है और अपने आपको उच्च प्रमाणित कर रहा है । ये सारे जो विद्वेष पनपे हैं, वे इस आधार पर पनपे हैं कि अहिंसा का जो एक सूत्र था मानव जाति की एकता का, उसे भुला दिया गया । जब हम सामाजिक मूल्यों के ह्रास की चर्चा करते हैं तो इस बात पर हमें फिर विचार करना होगा कि कहां भूल हुई है ? उस भूल को पकड़ना होगा। जहां दर्द है वहां अंगुली टिके तब तो कोई उपचार की बात हो सकती है। दर्द कहीं और उपचार कहीं किया जाए तो बहुत सार्थकता नहीं होती । ठीक दर्द पर अंगुली टिकनी चाहिए । 'मनुष्य जाति एक है' - इस मूल्य की प्रतिष्ठा हमारी अनेक समस्याओं का एक समाधान है । कुछ लोगों ने इस दिशा में प्रयत्न किए। इनमें सर्वाधिक उल्लेखनीय प्रयत्न है महात्मा गांधी का । उन्होंने इन सारे विद्वेषों को मिटाने के लिए काफी प्रयत्न किए और अहिंसा के प्रति आस्था उत्पन्न करने का अथक प्रयास किया । किन्तु इतिहास इस बात का साक्षी है, घटनाएं स्वयं प्रमाण हैं कि वह प्रयत्न एक सीमा तक सफल हुआ, किन्तु व्यापक स्तर पर सफल नहीं हो सका । इसका कारण यही है कि जो प्रयत्न हुआ, वह बड़े लोगों में हुआ । अवस्था पक गई, विचार परिपक्व बन गए, धारणाएं पक गईं, उन लोगों में प्रयत्न हुआ। जब तक एक प्रभावशाली वातावरण रहा, परिस्थिति रही, तब तक तो लगा कि हिन्दुस्तानी मानस अहिंसा के निकट जा रहा है, किन्तु जैसे ही वह साया उठा, वह प्रभावी व्यक्तित्व सामने नहीं रहा और हिंसा देखते-देखते उग्र बन गई। जैसे ही हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का विभाजन हुआ, हिंसा ने क्या रूप लिया ? कितनी उग्रता सामने आई ? इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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